जो जानने योग्य है, हम सिर्फ देखते हैं, लेकिन उसे ठीक से समझना चाहिए- संत जलालुद्दीन रूमी
मुस्लिम धर्म की मान्यतानुसार इसी तारीख को मक्का शहर में 571 ईसवी को पैगम्बर साहब हजरत मुहम्मद सल्ल का जन्म हुआ था। यह मिलाद-उन-नबी का त्यौहार उन्ही की याद में मनाया जाता है। मुस्लिम धर्म में मान्यता हैं कि हजरत मुहम्मद सल्ल साहब ने ही इस्लाम धर्म की स्थापना की थी और ये इस्लाम के आखिरी नबी माने जाते हैं। इस दिन घरों, मस्जिदों में मिलाद की महफिल, कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी, नात ख्वानी की जाती है। मस्जिदों और दरगाहों को फूलों, झालरों, गुब्बारों आदि से सजाया जाता है। भारत के अलावा दुनिया के तमाम मस्जिदों पर परचम कुशाई होती है। लेकिन इस त्यौहार को लेकर मुस्लिम धर्म में लोगों के अलग-अलग मत है, कुछ लोग इस दिन को शोक दिवस के रूप में तो कुछ जश्न के साथ बड़े धूम-धाम से भी मनाते हैं ।
अपने अंहकार कि चिता जलाने वाला कभी मरता नहीं, मोक्ष प्राप्त कर लेता है- गुरु नानक देव
इस्लाम में ऐसी मान्यता हैं कि मक्का की पहाड़ी वाली गुफा, जिसे गार-ए-हिराह कहते हैं सल्ल को वहीं पर अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार जिब्राइल अलै के मार्फत पवित्र संदेश के साथ हजरत मोहम्मद साहब को अल्लाह ने एक अवतार के रूप में धरती पर भेजा था। उस समय मुस्लिम धर्म के लोगों में शराबखोरी, जुआखोरी, लूटमार, वेश्यावृत्ति और पिछड़ापन जैसी कुप्रथाएं भयंकर रूप से फैल रही थी, और ऐसे माहौल में मोहम्मद साहब ने जन्म लेकर लोगों को ईश्वर का पवित्र संदेश दिया था।
मैं नरक में जाकर वहां भी स्वर्ग का वातावरण उत्पन्न कर सकता हूं: संत इमर्सन
हजरत मोहम्मद साहब ने खुदा के हुक्म से जिस धर्म को चलाया, वह इस्लाम कहलाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘खुदा के हुक्म पर झुकना। इस्लाम का मूल मंत्र है- ‘ला ईलाहा ईल्लला मोहम्मदन-रसूलल्लाह’ जो कलमा कहलाता हैं। इसका अर्थ है- ‘अल्लाह सिर्फ एक है, दूसरा कोई नहीं, और मोहम्मद साहब उसके सच्चे रसूल माने जाते हैं। इस्लाम का सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान भी इस दिन पढ़ा जाता है, इसके अलावा लोग मक्का मदीना और दरगाहों पर जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन को नियम से निभाने से लोग अल्लाह के और करीब जाते हैं और उनपर अल्लाह की रहम होती है।
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