भगवान के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर में मूर्ति पूजा के साथ-साथ परिक्रमा का विशेष महत्व है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक मान्यताओं से गहराई से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि मंदिर में मूर्ति की परिक्रमा करना भगवान के प्रति भक्त की श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है। साथ ही भगवान के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक महत्व
सकारात्मक ऊर्जा का संचार- ऐसा माना जाता है कि मूर्ति में भगवान की दिव्य शक्तियों का वास होता है। इस लिए मंदिर में पूजा के दौरान मूर्ति की परिक्रमा करने से भक्त उस सकारात्मक ऊर्जा के संपर्क में आता है। भक्ति और समर्पण का प्रतीक- मूर्ति परिक्रमा भगवान के प्रति समर्पण और श्रद्धा की भवना को व्यक्त करने का सरल माध्यम है। यह दर्शाता है कि भक्त का जीवन भगवान के चारों ओर ही घूमता है।
सृष्टि का प्रतीक- धार्मिक मान्यता है कि मूर्ति परिक्रमा सृष्टि के चक्र का प्रतीक मानी जाती है। जो यह दर्शाती है कि सृष्टि की हर गतिविधि भगवान के नियंत्रण में है।
परिक्रमा के नियम
मंदिर और भगवान की मूर्ति परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से प्रारंभ करनी चाहिए। क्योंकि मान्यता है कि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती है। ऐसे में परिक्रमा करते समय हम ऊर्जा के साथ-साथ चलते हैं। साथ ही मूर्तियों के आसपास रहने वाली सकारात्मक ऊर्जा भक्तों को प्रदान होती है। सनातन धर्म में मूर्ति की परिक्रमा धार्मिक आस्था, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाने का अद्भुत माध्यम मानी जाती है। मान्यता है कि यह परंपरा भक्तों को सीधे भगवान से जोड़ती है। साथ ही आत्मिक शांति प्रदान करती है।
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