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सबसे उग्र है मां का कात्यायनी स्वरूप, नवरात्रि के छठें दिन इन मंत्रों से करें पूजा, गुरु की भी मिलती है कृपा

Maa Katyayani Puja Mantra नवरात्रि के छठें दिन मां पार्वती के छठें स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां का यह स्वरूप सबसे उग्र माना जाता है और महिषासुर के नाश के लिए माता ने इसी रूप को धारण किया था। इस माता की पूजा से गुरु बृहस्पति का भी आशीर्वाद मिलता है। यहां पढ़िए मां कात्यायनी के मंत्र, मां कात्यायनी कवच, मां कात्यायनी की आरती, मां कात्यायनी स्त्रोत आदि

जयपुरOct 08, 2024 / 10:18 am

Pravin Pandey

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नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा इन मंत्रों से करनी चाहिए


नवरात्रि के छठें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इस स्वरूप को देवी पार्वती ने महिषासुर नामक राक्षस का नाश करने के लिए धारण किया था। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती ने ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप अवतार धारण किया था। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही देवी पार्वती के इस रूप को देवी कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। यह देवी पार्वती का सर्वाधिक उग्र रूप माना जाता है और इसे योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है।

मान्यता के अनुसार देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को शासित करती हैं। देवी कात्यायनी को विशाल दैवीय सिंह पर आरूढ़ और चतुर्भुज रूप में दर्शाया जाता है। देवी कात्यायनी अपने बाएं हाथों में कमल पुष्प और तलवार धारण करती हैं तथा दाहिने हाथों को अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में रखती हैं। इस देवी का प्रिय पुष्प लाल है विशेष रूप से गुलाब के लाल फूल इन्हें प्रिय हैं।

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥


या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥

कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
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कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥


जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रन्थि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिये। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भण्डारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

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