पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष आये थे। इसी दौरान एक कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गयी।
श्राप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष में निवास करने लगो व अत्यंत कष्ट भोगने लगे। कथा के अनुसार, माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दुखी थे। जिसके कारण उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गर्इ।
इस तरह अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल जाती है। वे पहले से भी सुन्दर हो गए और फिर से स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया। जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित हो कर उनसे पूजा कि श्राप से मुक्ति कैसे मिली?
इंद्रदेव के इस सवाल पर उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। इंद्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं, इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं। अब आप लोग स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें। इस कथा से स्पष्ट है कि जया एकादशी व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।