नवकार महामंत्र में जिन तीर्थंकरों की आराधना की जाती है उनमें तप, त्याग, संयम व वैराग्य आदि के सात्विक गुण होते हैं। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु नवकार महामंत्र के परम इष्ट है। इनको नमन करना जैनत्व के संस्कार है।
कोयम्बत्तूर. नवकार महामंत्र में जिन तीर्थंकरों की आराधना की जाती है उनमें तप, त्याग, संयम व वैराग्य आदि के सात्विक गुण होते हैं। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु नवकार महामंत्र के परम इष्ट है। इनको नमन करना जैनत्व के संस्कार है। जैन संस्कार में नवकार महामंत्र सर्वोच्च मंत्र है जिसे शास्त्रों में धिराज की उपाधि दी गई है।
यह बात जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने
Coimbatore आरजी स्ट्रीट स्थित जैन आराधना भवन में धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि आत्म शुद्धि के साथ शरीर शुद्धि के लिए भी तप श्रेष्ठकर है। तप से कर्मों का पालन होता है । शरीर की बीमारियों का भी निदान होता है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में धर्म क्रियाओं के लिए व्यक्ति के पास समय नहीं है। नवकार मंत्र के जरिए माया रूपी दलदल से पार लगाया जा सकता है। जीवन में चार पुरुषार्थ है धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। धर्म ही हमें भव सागर से पार ले जा सकता है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति अर्थ ,काम में धर्म को भूल गया है। अर्थ जरुरी है पर वह सत्यता व धर्म से कमाया है तो मोक्ष के करीब ले जाएगा। पाप से कमाया धन हमें डूबो देगा। इसी लिए धर्म गुरू व शास्त्र भगवान से प्रेम की बात करते हैं । मुनि ने कहा कि भगवान हमारा अहित नहीं होने देंगे। भगवान किसी का अहित नहीं होने देंगे। भाव शुद्ध होने चाहिए। किसी माता के मन में अपने पुत्र को पीड़ा होने का भाव कभी पैदा नहीं होता। पीड़ा होने पर माता को पुकारे जाने पर वह सारे काम छोड़ कर आएगी । इसी प्रकार भगवान को समर्पण भाव से पुकारे जाने पर वह अवश्य आएंगे। प्रवचन के दौरान आशु सिंघवी के प्रसंग को बताया जिन्होंने कई गांवों को कर्ज मुक्त कर मानव सेवा की। नवपद महिमा में आठ तीर्थों की वंदना कराई गई।
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