कोयम्बत्तूर. पंकज मुनि ने कहा है कि समाज सेवा व साधना के मार्ग में साधक को जहां प्रशंसा के फूल मिलते हैं वहीं निंदा के शूल भी चुभते हैं। साधक को दोनों अवस्थाओं में समभाव रखना चाहिए। उसे न तो प्रशंसा में फूलना चाहिए और न ही निंदा में अपने समभाव को भूलना चाहिए। मुनि शनिवार को
Coimbatore opencara street ओपनकारा स्ट्रीट स्थित जैन स्थानक Jain sthanak में धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने बताया था कि सुख -दुख, लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, निंदा-प्रशंसा, सम्मान-अपमान सभी परिस्थितियों में जो साधक समभाव रखता है वह साधना की राह में बढ़ते हुए सिद्धि के द्वार तक पहुंच जाता है। पंकज मुनि ने कहा कि दुनिया में लोग तिनके के समान हैं अर्थात वे न तो छाया दे सकते हैं न सहारा। कुछ लोग ठूंठ के समान हैं जो न फल देते हैं न आश्रय। कुछ लोग कांटे के समान हैं जो पास से गुजरने वाले को भी चुभन देते हैं। दूसरी ओर कुछ सज्जन पुरुष बादलों के समान होते हैं, जो समुद्र के खारेपन को भी मधुरता में बदल कर धरती की प्यास को शांत कर देते हैं। कुछ लोग अंगूर के बाग की तरह लता मंडप की तरह होते हैं। गर्मी से सताया हुआ कोई यात्री इसके नीचे आश्रय लेता है तो उसे ठंडक महसूस होती है साथ ही खाने को फल भी मिलते हैं।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार समाज में भी कुछ लोग होते हैं जिनके संपर्क में आने से प्रेम व वात्सल्य की शीतल छाया के साथ स्नेह सहयोग के मधुर फल भी मिलते हैं। तुलसी ने कहा कि इस दुनिया में भांति -भांति के लोग सबसे हिल मिल चलिए नदी – नाव संयोग। समाज सेवी को कुछ लोग धन्य मानते हैं तो कुछ दिखावा बताते हैं। लोग कहते हैं सेवा के नाम पर यह अपना घर भरता है। मुनि ने उन्होंने कहा कि निंदा के नारे हों या प्रशंसा के जयकारे दोनों अवस्थाओं में विचलित हुए बगैर आगे बढ़ते रहें ।सफलता निश्चित है।
संघ के मंत्री धनराज चौरडिय़ा ने बताया कि रविवार सुबह आठ बजे निर्धारित वेशभूषा में सामायिक करने वाले बालक बालिकाओं को पुरुस्कृत किया जाएगा।
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