जगन्नाथ मंदिर की संरचना (Puri Jagannath Mandir Structure)
पुरी का जगन्नाथ मंदिर कलिंगशैली में बना है। इस मंदिर की स्थापत्य कला और शिल्प आश्चर्यजनक है। श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है। मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र है जो शहर के किसी भी कोने से देखने पर मध्य में ही नजर आता है। अष्टधातु से निर्मित इस चक्र को नीलचक्र के नाम से जाना जाता है।मंदिर का मुख्य ढांचा 214 फिट ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर खड़ा है। इसके अंदर बने आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर का यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गए हैं।
मंदिर की मुख्य मढ़ी यानी भवन 20 फिट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है और दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित है।
यह है जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (Jagannath Temple History)
मंदिर के रिकॉर्ड के अनुसार भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर को अवंती के राजा इंद्रद्युम्न ने बनवाया था। लेकिन वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण दसवीं शताब्दी और 15वीं शताब्दी के बाद कराया गया। वहीं मंदिर परिसर को बाद के राजाओं ने विकसित किया था। गंग वंश में मिले ताम्र पत्रों के मुताबिक वर्तमान मंदिर के निर्माणकार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू कराया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल 1078-1148 के दौरान बने थे। इसके बाद ओडिशा राज्य के शासक अनंग भीम ने सन 1197 ईं में इस मंदिर को वर्तमान रूप दिया था।मंदिर के निर्माण के बाद इसमें सन 1558 ई. तक पूजा अर्चना होती रही, और अचानक इसी वर्ष अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और पूजा बंद करा दी। हालांकि विग्रहों को चिलिका झील में स्थित एक द्वीप में गुप्त रूप से पुजारियों ने सुरक्षित कर दिया। इसके बाद रामचंद्र देब ने खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया और उनके स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के बाद मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुन:स्थापना हुई। मंदिर 400,000 वर्ग फुट में फैला है और चार दीवारी से घिरा हुआ है।
मंदिर की प्रमुख बातें (Interesting Facts Jagannath Temple)
- मंदिर के कई अनुष्ठान ओडियाना तंत्र पर आधारित हैं, जो महायान तंत्र और शबरी तंत्र का परिष्कृत संस्करण है, जो तांत्रिक बौध धर्म और आदिवासी मान्यताओं से विकसित हुआ है। किंवदंतियां मूर्तियों को आदिवासी जनजातियों से जोड़ती हैं और यह मंदिर वैष्णव परंपरा के 108 अभिमान क्षेत्रों में से एक है।
- मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव वार्षिक रथ यात्रा है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल रथों में विराजमान कर खींचा जाता है।
- जगन्नाथ मंदिर में पूजा भील सबर आदिवासी पुजारी करते हैं। हालांकि मंदिर में अन्य समुदायों के पुजारी भी रहते हैं।
- अधिकांश हिंदू मंदिरों मेंभगवान का विग्रह पत्थर और धातु के होते हैं, लेकिन जगन्नाथ की छवि लकड़ी से बनी है, जिसे हर 12 या 19 साल में एक सटीक प्रतिकृति से औपचारिक रूप से बदल दिया जाता है।
- किंवदंतियों के अनुसार यहां कृष्ण का दिल यहां रखा गया है, और जिस सामग्री से विग्रह बनाया जाता है वह दिल को नुकसान पहुंचाती है, इसलिए उसे कुछ साल में बदलना पड़ता है।
- यह मंदिर महान वैष्णव संत रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, निम्बकाचार्य, वल्लभाचार्य और रामानंद से भी जुड़ा रहा है। रामानुज ने यहां मंदिर के दक्षिण-पूर्वी कोने में एमार मठ की स्थापना की थी। जबकि आदि शंकराचार्य ने गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। यह मंदिर के देवता जगन्नाथ के भक्तों में चैतन्य महाप्रभु का भी नाम शामिल है।
- दूसरे मंदिरों के विपरीत इस मंदिर में गैर हिंदुओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा अनंतवर्मन को भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए, उन्होंने सपने में राजा से गुफा को ढूंढ़कर मूर्ति को स्थापित करने को कहा था। मान्यता है कि शुरुआत में मंदिर के निर्माण में करीब 14 वर्ष लगे।
- मंदिर के शिखर पर चक्र और ध्वज स्थापित किया गया है। सुदर्शन चक्र और लाल ध्वज भगवान जगन्नाथ के मंदिर के अंदर विराजमान होने का प्रतीक है। अष्टधातु से निर्मित इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है।