लेकिन इसे महाप्रसाद कहे जाने के पीछे एक बड़ी वजह है, इसके अनुसार प्रसाद बनने के बाद इसे मुख्य मंदिर में ले जाकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को भोग लगाया जाता है। इसके बाद श्रीमंदिर में माता बिमला देवी जी को भोग लगाया जाता है। दोनों मंदिरों में भोग लगाने के बाद यह प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है। मान्यता है कि जब प्रसाद बनता है तो उसमें से कोई सुगंध नहीं आती, लेकिन जैसे ही उसे भोग लगाकर बाहर लाया जाता है तब उसमें से भोजन की स्वादिष्ट सुगंध आने लगती है। इसके बाद यह महाप्रसाद भक्तों को ग्रहण करने के लिए दिया जाता है। यह प्रसाद भक्तों को मंदिर में स्थित आनंद बाजार में मिलता है। ताजा प्रसाद दोपहर 2 से 3 बजे निश्चित दर पर मिलता है।
भगवान जगन्नाथ की रसोई की महत्वपूर्ण बातें
भगवान जगन्नाथ की रसोई में जिसमें प्रसाद तैयार किया जाता है दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है, क्योंकि करीब 700 लोग मिलकर रोजाना बीस लाख लोगों के लिए यहां भोजन तैयार करते हैं।भगवान के लिए बनाए जाने वाला व्यंजन पूरी तरह से सात्विक, शाकाहारी और प्राकृतिक सब्जियों का मिश्रण होता है। इसे वहीं बहने वाली नदी के जल में बनाया जाता है। साथ ही बनाने के लिए केवल मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। खास बात यह है कि महाप्रसाद (Jagannath Mandir Mahaprasad) को बनाने के लिए मुख्य रूप से सात बड़े मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें एक के ऊपर एक करके रखा जाता है।
प्रसाद बनाने के लिए लकड़ी की आग का प्रयोग किया जाता है। सबसे हैरानी की बात है कि आग में रखे सबसे नीचे वाले पात्र का भोजन अंत में पकता है और सबसे ऊपर रखे मिट्टी के बर्तन का भोजन सबसे पहले पकता है।