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शंकराचार्य जयंती 9 मई : एक बार इसका पाठ करने से हर तरह की परेशानियों से मिल जाती है मुक्ति

शंकराचार्य जयंती 9 मई : एक बार इसका पाठ करने से हर तरह की परेशानियों से मिल जाती है मुक्ति

May 08, 2019 / 04:32 pm

Shyam

Jagadguru shankaracharya jayanti

शंकराचार्य जयंती 9 मई : एक बार इसका पाठ करने से हर तरह की परेशानियों मिल जाती है मुक्ति

आदि शंकराचार्य के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र दिन शंकराचार्य जी द्वारा रचित “अद्वैत सिद्धांत” या फिर “गुरु अष्टक” का पाठ करने से व्यक्ति की हर तरह की परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो जाती है। अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित करने वाले आदि शंकराचार्य जी हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि, जगद्गुरु एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाने जाते हैं।

 

 

असाधारण प्रतिभा के धनी जगदगुरू आदि शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के पावन दिन हुआ था। दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में जन्में शंकर जी आगे चलकर ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य’ के नाम से विख्यात हुए। इनके पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहां जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई, तो उन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की। उनकी पूर्ण श्रद्धा और कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।

 

भगवान शंकर से शिवगुरु ने एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र का आशीर्वाद मांगा। तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं है। तब भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान देते हुए कहा कि- मैं स्वयं ही पुत्र रूप में तुम्हारे यहां जन्म लूंगा। इस प्रकार आदि गुरु शंकराचार्य के रूप में स्वयं भगवान शंकर जी उनके पुत्र के रूप में अवतरीत हुए।

 

शंकराचार्य जी ने शैशव काल में ही संकेत दे दिये थे कि वे और बालकों का तरह सामान्य बालक नहीं है। सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने संपूर्ण वेदों का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। बारह वर्ष की आयु में सर्वशास्त्र में पारंगत हो गए और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य कि रचना भी कर दी थी। उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना अपने शिष्यों को पढ़ाते हुए ही कर दी थी, इसलिए तो उनके इन्हीं महान कार्यों के कारण वे आदि जगतगुरु शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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