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Surya Dev: कष्टों के निवारण और सोए भाग्य को जगाने के लिए, आदित्य ह्रदय स्त्रोतम् का कब और कैसे करें पाठ?

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य पिता व आत्मा के कारक

Aug 08, 2021 / 12:02 pm

दीपेश तिवारी

SURYA DEV

lord surya

Surya Puja: सनातन संस्कृति में आदि पंच देवों में से एक भगवान श्री सूर्य नारायण की पूजा में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सबसे अचूक व खास माना जाता है। मान्यता के अनुसार सूर्य देव को इस स्तोत्र के पाठ से प्रसन्न करने के साथ ही उनकी कृपा भी प्राप्त की जा सकती है।

दरअसल आदित्य हृदय स्तोत्र का जिक्र हिंदू धर्म के महाकाव्य रामायण में है, वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार यह स्तोत्र भगवान श्री राम को ऋषि अगस्त्य ने रावण पर विजय के लिए दिया था। इस स्त्रोत का पाठ शस्त्रों में भी काफी शुभ होने के साथ ही लाभकारी माना गया है। वहीं ज्योतिषशास्त्र में भी आदित्य हृदय स्तोत्र को काफी खास माना जाता है।

मान्यता है कि इसके हर रोज पाठ से जीवन की अनेक परेशानियों का निवारण होता है। वहीं कुछ लोग इसका पाठ केवल सूर्य देव के साप्ताहिक दिन रविवार को भी करते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र क्यों है खास –
ज्योतिष के जानकारों के अनुसार आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से एक ओर जहां जातक ऊर्जावान बनता है, वहीं इससे उसका सोया हुआ भाग्य भी जाग जाता है। ग्रहों के सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में पिता व आत्मा का कारक माना गया है। वहीं सूर्य ही आपके मान सम्मान,यश कीर्ति सहित अपमान के भी कारक माने जाते हैं।

ऐसे में माना जाता है कि यदि आपका सूर्य अच्छा है, तो आपके अपने पिता से अच्छे संबंध रहने के साथ ही आप जीवन में काफी तरक्की हासिल करेंगे।

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लेकिन, वहीं यदि आपका सूर्य कमजोर या किन्हीं कारणोंवश अच्छे फल नहीं दे रहा है तो ऐसे में आपको आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। ताकि सूर्य के नकारात्मक प्रभाव से आपका बचाव हो सके।

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Surya Puja Ke Labh Surya Dev Worship Benefits Paush Mass 2021
IMAGE CREDIT: patrika
ऐसे करें पाठ-
जानकारों के अनुसार आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के लिए सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर शुद्ध होने के पश्चात गणेशजी का ध्यान कर उनका आह्वाहन करें या गणेश पूजा कर नित्य पूजा पूर्ण करें। पूजा करने के बाद आप 101 बार ‘ओम सूर्य देवो नमः’ मंत्र का जाप करें। इसके बाद पूरे विश्वास व श्रद्धा के साथ आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। और अंत में सूर्यदेव को जल चढ़ाएं।
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ध्यान रहे सूर्य देव को जल तांबे के लोटे से ही अर्पित करें। वहीं जल देते समय इस मुद्रा में रहें कि जल की धार के बीच में से सूर्य की रोशनी आपकी आंखों तक पहुंचे।

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