मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश के नाम-स्मरण, ध्यान-जप,आराधना से आराधक की मेधाशक्ति यानि बुद्धि का विकास होता है, साथ ही उसकी समस्त कामनाओं की पूर्ति भी होती है। इसके साथ ही कार्यों में आने वाले विघ्नों व दुखों का भी नाश होता है, जिससे आनंद-मंगल की वृद्धि होती है।
एकदन्तं महाकायं तप्तकांचनसंनिभम्।
लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देsहं गणनायकम्।।
जानकारों के अनुसार ओंकार का व्यक्त स्वरूप गणपति हैं। जिस प्रकार हर मंत्र के आरंभ में ओंकार का उच्चारण आवश्यक है, उसी तरह प्रत्येक शुभ अवसर पर भगवान श्री गणेश की पूजा अनिवार्य मानी गई है।
ऐसे में एक प्रश्न स्वाभाविक तौर से उत्पन्न होता है कि भगवान श्री गणेश की पूजा कैसे की जाए कि वह प्रसन्न हो, तो इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए एक अत्यंत सरल पूजा विधि इस प्रकार है…
श्री गणेश पूजन : ये है सामग्री…
चौकी, श्री गणेश प्रतिमा, ‘पंचामृत के लिए : एक कटोरी दूध, आधा कटोरी दही, दो चम्मच शहद, एक चम्मच घी, दो चम्मच बूरा या शक्कर’ , – शुद्ध जल का पात्र, एक चम्मच, स्नान कराने के लिए एक थाली। , गणेश जी के वस्त्र, गणेश जी के आभूषण, यज्ञोपवीत, कलावा यानि मौली, चंदन,रोली, चावल, सिंदूर, सुगंधिति द्रव्य (अबीर गुलाल, इत्र), फूलमाला, पुष्प, दुर्वा, शमीपत्र, धूप, अगरबत्ती,दीपक, आरती, कपूर, नैवेद्य(मोदक, मेवा), केले, ऋतुफल और नारियल, पान का पत्ता (उसपर 1 सुपारी, दो लोंग व इलाइची रखकर बीड़ा बना लें), दक्षिणा के लिए रुपए (श्रद्धानुसार)
श्री गणेश की पूजन विधि…
इसके तहत सबसे पहले आराधक स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन ले, फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठे। पूजन के लिए सभी सामग्री अपने पास रख लें।
इसके बाद सामने श्री गणेश के लिए एक चौकी स्थापित करें, जिस पर लाला कपड़ा बिछा दें। उस पर श्री गणेश की प्रतिमा यानि मूर्ति विराजमान कर दे। यदि मूर्ति नहीं है तो एक पात्र में (छोटी प्लेट) सुपारी पर लाल कलावा लपेटकर चावलों के उपर स्थापित कर दें, बस भगवान श्री गणेश यहां साकार रूप में उपस्थिति हो गए।
पूजन शुरू करने से पहले घी का दीपक जलाकर उसे चौकी के दाहिने भाग में थोड़े से चावलों के उपर रख दें। ॐ दीपज्योतिषे नम: कहकर दीपक पर रोली का छींटा देकर एक पुष्प चढ़ा दें और मन में प्रार्थना करें कि हे दीप! आप देव रूप मेरी पूजा के साक्षी हों, जब तक मेरी पूजा समाप्त न हो जाए, तब तक तुम यहीं स्थिर रहना।
अब हाथ में पुष्प, दूर्वा व अक्षत लेकर श्री गणेश जी का ध्यान करें-
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।।
इसके बाद श्री गणेश के विभिन्न नामों के साथ सभी सामग्री उन्हें अर्पित करें। इससे पूजा के साथ श्री गणेश के विभिन्न नामों के उच्चारण काफल भी मिलेगा।
हे सुमुख! मै आपका स्मरण करता हूं, आपको बुलाता हूं, आपको नमस्कार करता हूं। आप यह आसन स्वीकार करें। इस प्रकार की भावना करके हाथ का पुष्प व अक्षत श्री गणेश के आगे चढ़ा दें।
इसके बाद यदि श्री गणेश की मूर्ति मिट्टी की है तो स्नान आदि केवल जल के छीटें देकर ही करें। वहीं यदि धातु की मूर्ति है तो उनका स्नान विधिपूर्वक करें, इसके तहत धातु की मूर्ति को एक थाली या कटोरे में रख लें। फिर…
हे लम्बोदर! यह आपके लिए पाद्य है, ऐसा कहकर गणेश जी के चरण धोने के लिए पैरों पर जल चढ़ाएं।
हे उमापुत्र! यह आपके लिए अघ्र्य है, ऐसा कहकर गणेश जी के हाथें को धुलाने की भावना से जल के छीटें लगाएं।
हे वक्रतुण्ड! यह आचमन करने के लिए जल है, ऐसा कहकर गणेश जी की सूंड़ पर जल चढ़ा दें।
हे शंकरसुवन! यह आपके स्नान के लिए जल है, ये कहकर गणेश जी को जल से स्नान कराएं, फिर पंचामृत से स्नान कराएं। पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सूंड़ पर जल का छींटा लगाकर आचमन करा दें। मूर्ति को साफ कपड़े से पैंछकर चौकी में स्थापित कर दें।
हे शूपकर्ण! यह आपके लिए वस्त्र व उपवस्त्र हैं। धोती और उपवस्त्र के अभाव में दो कलावे के टुकड़े वस्त्र की भावना से चढ़ा दें।
हे कुब्ज! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है, और गणेश जी को जनेउ पहना दें।
हे एकदंत! यह आपके लिए आभूषण है, इन्हें स्वीकााार करें।
हे गणपति! यह आपके लिए चंदन,रोली, चावल, सिंदूर, अबीर—गुलाल व इत्र हैं, यह सभी सामग्री एक के बाद एक गणेश जी को अर्पित करें।
हे विघ्नविनाशक! यह मैं आपके लिए सुंदर पुष्पमाला लाया हूं, इसे स्वीकार करें।
हे गजमुख! यह आपके लिए अत्यंत हरे, अम1तमय 21 दूर्वा लाया हूं, इन्हें स्वीकार करें। ऐसा कहकर गणेश जी को 21 दूर्वा को मोली से बांधकर चढ़ाना चाहिए, वैसे गणेश जी दो दूर्वादल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। यदि शमी पत्र उपलब्ध हो तो शमी पत्र भी चढ़ा दें।
हे विकट! यह आपके लिए धूम व अगरबत्ती है।
हे हेरम्ब! यह आपके लिए शुद्ध घी में रूई की बाती से बना दीपक है, जिस प्रकार यह दीप सारे अंधकार को दूर कर देता है, वैसे ही आप हमारे पापों को दूर कीजिए। यह कहते हुए पहले प्रज्जवलित दीपक पर चावल चढ़ा दें।
हे सिद्धिविनायक! यह आपके लिए लड्डुओं (मोदक) का भोग है। आपको मोदक सदा ही प्रिय है। यह आप ग्रहण करें और अपने प्रति मेरी भक्ति को अविचल कीजिए।
हे बुद्धिविनायक! यह आपके लिए फल हैं, आप मेरे लिए फलदाता होइये।
हे विद्याप्रद! यह नारियल का फल मैं आपकको अर्पित करता हूं, इससे जन्म—जन्म में मुझे सफलता प्राप्त हो।
हे कपिल! यह आपके लिए ताम्बूल (पान) है। यदि पान उपलब्ध न हो तो एक सुपारी, दो लौंग व एक इलायची चढ़ा दें।
हे सर्वदेव! यह आपके लिए दक्षिणा है, इसे स्वीकार कर मुझे शांति प्रदान करें।
हे सर्वदेव! यह आपके लिए दक्षिणा है, इसे स्वीकार कर मुझे शांति प्रदान करें।
अंत में घर में डुबोई हुई बाती व कपूर जलाकर भगवान श्री गणेश की आरती करें…
शेंदुर लाल चढ़ायों अच्छा गजमुख को।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरी-हर को।।
हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥1॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥धृ॥
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतत संपत सबही भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥3॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥
अब अंत में गणपति जी को पुष्पांजलि के रूप में पुष्प चढ़ावें और परिक्रमा करके दण्डवत प्रणाम करें और क्षमा-प्रार्थना करें-‘गणेश-पूजन में मुझसे जो भी न्यूयनता या अधिकता हो गई हो तो हे फलप्रद! मुझे क्षमा करें। इस पूजा से सिद्धि-बुद्धि सहित महागणपति संतुष्ट हों।’