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Chhath Puja 2023: संतान के लिए माताएं 19 नवंबर को डूबते सूर्य को देंगी अर्घ्य, ये हैं सूर्योदय सूर्यास्त समय और पूजा विधि

लोक आस्था का पर्व छठ 17 नवंबर से नहाय खाय के साथ शुरू हो चुका है। आज शनिवार को कार्तिक शुक्ल पंचमी यानी खरना है। आज शाम से ही 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होने वाला है और संतान के कल्याण के लिए माताएं कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूजा कर डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगी और सप्तमी को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करेंगी। आइये जानते हैं छठ व्रत की पूजा विधि

Nov 18, 2023 / 02:30 pm

Pravin Pandey

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छठ पूजा नहाय खाय के साथ कल से शुरू हो रही है।

दिवाली के छह दिन बाद रखा जाता है छठ व्रत
यह व्रत दिवाली के छह दिन बाद पड़ता है। हालांकि इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से ही हो जाती है। जबकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी सूर्य षष्ठी के दिन सूर्य नारायण और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस पर्व का समापन सप्तमी के दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पारण करने के साथ होता है।

बता दें कि छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा कर उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। मान्यता है कि छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करने वाली देवी हैं और यह बालकों को दीर्घायु प्रदान करती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार छठी मैया ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं, और इन्हें कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठें दिन की जाती है। आइये जानते हैं व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और सूर्योदय सूर्यास्त का समय..
नहाय खाय (पहला दिन)
छठ पूजा की शुरुआत चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचाने के लिए शाकाहारी भोजन किया जाता है। इस साल नहाय खाय शुक्रवार 17 नवंबर को है।
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी (17 नवंबर, शुक्रवार नहाय खाय)
सूर्योदयः सुबह 06:38 बजे
सूर्यास्तः शाम 04:59 बजे

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खरना (दूसरा दिन)
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना का है। यह कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन होता है जो इस साल 18 नवंबर को है। खरना का अर्थ पूरे दिन के उपवास से होता है। इस दिन व्रत रखने वाली माताएं जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करती हैं। हालांकि शाम के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करती हैं। साथ ही घर के बाकी सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर देती हैं।
कार्तिक शुक्ल पञ्चमी (18 नवंबर, शनिवार, लोहंडा और खरना)
सूर्योदयः सुबह 06:39 बजे
सूर्यास्तः शाम 04:58 बजे

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
छठ पर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है, यह दिन इस साल रविवार 19 नवंबर को पड़ रहा है । यह दिन छठी मैया की विशेष पूजा का है, इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी को शाम के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।

सूर्य षष्ठी के दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए छठ घाटों पर भीड़ उमड़ती है। शाम को फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से भरी बांस की टोकरियों के साथ लोगों का रेला छठ घाटों पर दिखाई देता है और यहां व्रती इन सामानों से सूप सजाकर रखती हैं और अपने परिवार के लोगों की मौजूदगी में सूर्य को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी (19 नवंबर, रविवार, संध्या अर्घ्य)
सूर्योदयः सुबह 06:40 बजे
सूर्यास्तः शाम 04:58 बजे

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उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
छठ पर्व के अंतिम दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सुबह के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। यह तिथि 20 नवंबर सोमवार को है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगती हैं। पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शर्बत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
कार्तिक शुक्ल सप्तमी ( 20 नवंबर, सोमवार, उषा अर्घ्य, पारण, सूर्य पूजा का चौथा दिन)
सूर्योदयः सुबह 06:41 बजे
सूर्यास्तः शाम 04:57 बजे


छठ पूजा की सामग्री
छठ पूजा में षष्ठी से पहले ये सामग्री जुटा लेनी चाहिए, ताकि विधि विधान से सूर्य देव को अर्घ्य देने में कोई दिक्कत न हो।
1. बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास
2. चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी
3. नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई
4. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें।
अर्घ्य देने की विधि
बांस की टोकरी में सभी सामग्री को रखकर छठ घाट पहुंचे। यहां पूरा प्रसाद सूप में रखकर दीपक जलाएं फिर नदी या तालाब में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।

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