मंत्र: 2- या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ देवी मां चंद्रघंटा का स्वरूप
देवी मां चंद्रघंटा इस स्वरूप में सिंह पर विरजमान हैं और इनके 10 हाथ हैं। जिनमें से इनके चार हाथों में कमल फूल, धनुष, जप माला और तीर है, जबकि पांचवां हाथ अभय मुद्रा में रहता है।
इसके अलावा चार अन्य हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार मौजूद होने के साथ ही पांचवा हाथ वरद मुद्रा में है। माता का यह रूप भक्तों के लिए बेहद कल्याणकारी माना गया है।
देवी मां के तीसरे रूप चंद्रघंटा की पूजन विधि
पंडितों और जानकारों के अनुसार नवरात्र के तीसरे दिन माता की बाजोट (चौकी) पर देवी मां चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए। गंगा जल या गोमूत्र से शुद्ध करने के बाद चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करनी चाहिए और फिर पूजन का संकल्प लेना चाहिए।
फिर वैदिक और दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से मां चंद्रघंटा सहित सभी स्थापित देवी-देवताओं की षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य,धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। अब प्रसाद बांटें और पूजन संपन्न करें। साथ ही मन ही मन में माता से प्रार्थना करते रहें कि हे मां! आप की कृपा हम पर सदैव बनी रहे और हमारे दुःखों का नाश हो।
ऐसे करें मां चंद्रघंटा को प्रसन्न
: भूरे या ग्रे रंग की कोई चीज इस दौरान देवी मां को अर्पित करें साथ ही इसी रंग के कपड़े भी पहनें। ध्यान रखें मां चंद्रघंटा को अपना वाहन सिंह अतिप्रिय है ऐसे में इस दिन गोल्डन रंग के कपड़े पहनना भी शुभ माना जाता है।
: देवी के इस स्वरूप को दूध, मिठाई और खीर का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा माता चंद्रघंटा को शहद का भोग भी लगाया जाता है।
: मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र ‘ऐं श्रीं शक्तयै नम:’ का जाप करना भी शुभ माना जाता है। इसके अलावा देवी के महामंत्र ‘या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:’ का जाप करें।
मां चंद्रघंटा का भोग:
मान्यता के अनुसार मां चंद्रघंटा को मीठी खीर बेहद प्रिय है। ऐसे में इस दिन देवी मां को पूजा के समय गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं, मान्यता है कि इससे माता अति प्रसन्न होती हैं। माना जाता है कि यदि इस दिन कन्याओं को खीर, हलवा या स्वादिष्ट मिठाई खिलाई जाए, तो भी देवी मां प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हुए अपने भक्त को हर बाधा से मुक्त करती हैं।
मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राक्षस महिषासुर ने अपनी शक्तियों के घमंड में देलोक पर आक्रमण कर दिया। तब महिषासुर और देवताओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। जब देवता हारने लगे तो वह त्रिदेव के पास मदद के लिए पहुंचे। उनकी कहानी सुन त्रिदेवों को गुस्सा आ गया, जिससे मां चंद्रघंटा का जन्म हुआ। भगवान विष्णु ने माता को अपना चक्र, भगवान शिव ने त्रिशुल, देवराज इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज तलवार और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता को कई अस्त्र शस्त्र दिए, जिसके बाद उन्होंने राक्षस का वध कर दिया।
वहीं देवी पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव राजा हिमालय के महल में पार्वती से शादी करने पहुंचे तो वे बालों में कई सांप, भूत, ऋषि, भूत, अघोरी और तपस्वियों की एक अजीब शादी के जुलूस के साथ भयानक रूप में आए। यह देख पार्वती की मां मैना देवी बेहोश हो गईं। तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया जिसके बाद दोनों ने शादी हो गई।