उम्र,मौसम,भूख और बिमारी भी नहीं तोड़ पा रही आंदोलनकारियों का हौसला, दुधमुंहे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक आंदोलन स्थल पर
आदिवासी पिछले 6 दिनों से डिपॉजिट 13 अडानी (Adani group) को दिए जाने का विरोध करते हुए अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं। आंदोलन (Bailadila tribal movement) स्थल पर दुधमुहे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक झुलसा देने वाली गर्मी में डटा हुआ है। 24 घंटे में 3 से 4 घंटे की नींद, खाने के लिए चावल साथ आलू की सब्जी और पीने के लिए बस एक टैंकर भी उनकी आस्था को डिगा नहीं सका है
उम्र,मौसम,भूख और बिमारी भी नहीं तोड़ पा रही आंदोलनकारियों का हौसला, दुधमुंहे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक आंदोलन स्थल पर
दंतेवाड़ा. देवे और लखमा पहाड़ी पार के गांव से आई हैं। उनके साथ उनके पांच से छह माह के दुधमुंहे बच्चे हैं। दोनों हिंदी नहीं समझ पाते हैं। गोंडी में स्थानीय पत्रकार ने सवाल पूछा तो कहा कि हम अपने देव नंदराज (Nanadraj mountain) के लिए आए हैं। हमारी आस्था उनसे जुड़ी है। हम उनकी पूजा करती हैं।
सुक्का और मंगल भी पास के गांव से हैं और कहते हैं चाहे आंधी आए या तूफान जब तक हमें हमारे देव के सुरक्षित होने की गारंटी नहीं मिलती हम डटे रहेंगे। ये उन आदिवासियों की जुबानी है जो बैलाडीला में पिछले 6 दिनों से डिपॉजिट 13 अडानी (asdani group) को दिए जाने का विरोध करते हुए अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं। आंदोलन स्थल (Bailadila tribal movement) पर 6 दिनों से डटे आदिवासी मुलभूत सुविधाओं के अभाव के बावजूद यहां डटे हुए हैं। उन्हें यहां 24 घंटे में 3 से 4 घंटे की ही नींद मिल रही है।
खाने का मेन्यू छह दिन से एक ही है। हर दिन दोनों टाइम चावल और आलू की रसेदार सब्जी मिल रही है। पीने के पानी के लिए आंदोलन स्थल पर एक टैंकर है जो हजारों आदिवासियों की प्यास बूझा रहा है। टैंकर में पानी खत्म हो जाता है तो आदिवासी घंटों तक प्यासे रहते हैं। नींद पूरी नहीं होने और सही तरह से खाना नहीं मिलने की वजह से आदिवासी बीमार पड़ रहे हैं। एनएमडीसी के परियोजना (NDMC Project) अस्पताल में अब तक उल्टी, दस्त, बुखार से पीडि़त 200 से ज्यादा आदिवासियों को भर्ती करवाया जा चुका है।
इस बीच आंदोलन के अगुवा कहते हैं कि हमारे पास कोई फंड नहीं है। खाना पकाने के लिए लकड़ी भी गांवों सेे ट्रैक्टर के जरिए लाई गई है। नहाने और निस्तारी के लिए एनएमडीसी (NDMC) की पाइप लाइन के पानी से काम चला रहे हैं। संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति के अंतर्गत आने वाले पंच-सरपंच और अन्य समाज सेवियों की मदद से आंदोलन (Bailadila tribal movement) चल रहा है। ठीक इसी तरह की तस्वीर अब बैलाडीला से 10 किमी दूर बचेली में भी अब नजर आने लगी है। यहां मंगलवार रात ही सैकड़ों आदिवासी पहुंच चुके हैं सीआईएसएफ चेक पोस्ट को जाम कर दिया है।
84 गांवों की आस्था का केंद्र है नंदराज पर्वत, साल में 4 बार होती है पूजा
बैलाडीला स्थित नंदराज पर्वत 84 गांवों के लोगों की आस्था का केंद्र है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत आदिवासी अपने इष्ट देव नंदराज (Nandraj) का नाम लेकर ही करते हैं। बाबा नंदराज की पत्नी पेटटोड रानी 13 नंबर पहाड़ी में स्थापित हैं। यहां साल में 4 बार पूजा होती है। आदिवासी पुजारी (गायता पेरमा) यहां आम पूजा, बीज पूजा, जात्रा और धान बोने की पूजा करवाते हैं।
इसमें हजारों ग्रामीण शामिल होते हैं। दुर्गम रास्तों से 50-60 किमी का सफर करके आदिवासी यहां पहुंचते हैं। बैनपाल गांव के पुजारी बुगुरी पिता गुंदरु गायता पेरमा बताते हैं कि वे साल में चार बार यहां ग्रामीणों के साथ अपने आराध्य की पूजा के लिए पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि पहले नंदराज पर्वत (Nandraj mountain) में उनके पुरखे रहा करते थे। घांस के झोपड़े में प्राकृतिक कारणों से आग लग जाने से बैनपाल में आकर रहने लगे।
खनन से नदी-नाले सूख जाएंगे, वन्य प्राणियों पर भी खतरा
पहाड़ी में खनन से तालपेरु नदी, मरी नदी और मलांगिर नाला पूरी तरह से सूख जाएगा। इससे वन्य प्राणी खत्म हो जाएंगे। पानी के लिए बीजापुर के गंगालूर, बासागुड़ा, दंतेवाड़ा, सुकमा के 50 से अधिक गांव इन नदी-नालों पर निर्भर हैं। खनन से लोहा गांव, पीडिया, अंदरि, तमोड़ी, करका, तुमनार, बांसागुड़ा, गंगनपाल, पुस्पाका, कोंडापाल, हिरोली, डोका पारा, आलनार, गुमियापाल, तेनेली, आचाली, बर्रेम, रेवाली, बुड़ुम, अरवेली समेत 50 गांव प्रभावित होंगे।
1978 में हुआ था गोलीकांड, मारे गए थे 10 मजदूर
बैलाडीला में इससे पहले 1978 में बड़ा आंदोलन (Bailadila tribal movement) हुआ था। तब प्लांट के 10 हजार मजदूरों की छटनी किए जाने को लेकर ट्रेड यूनियन लीडर कामरेड इंद्रजीत सिंह सिंधु के नेतृत्व में विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा था। 5 अप्रैल को आंदोलन के दौरान सुरक्षा बलों की तरफ से गोली चली और सरकारी आंकड़ों के अनुसार 10 मजदूर और एक पुलिस जवान मारा गया। जबकि, स्थानीय लोग बताते हैं कि गोलीकांड में 50 से ज्यादा मजदूर मारे गए थे। आदिवासी आंदोलन (Tribal movemnet) की वजह से पहले भी एसएम डायकेम, मुकुंद आयरन और हीरानार के प्रस्तावित प्लांट का काम बंद हो चुका है।
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