बता दें कि जिले में कस्टम हायरिंग योजना का सही से क्रियान्वयन न हो पाने का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि अधिकांश किसानों को इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। जब सोसायटियों के पास ट्रैक्टर व उपकरण उपलब्ध थे, तब भी किसानों को योजना का लाभ तो दूरए योजना का प्रचार प्रसार न होने से 90 फीसदी से अधिक किसानों को इसके बारे ने पता ही नहीं था। जिन किसानों को योजना के बारे में जानकारी थी। वे भी लाभ लेने की जटिल प्रक्रिया से परेशान रहे और निजी ट्रैक्टरों को किराए पर लेने को मजबूर हुए।
वर्तमान में निजी ट्रैक्टरों पर निर्भर किसान
सरकारी योजना के तहत ट्रैक्टर किराए पर लेने की दर 625 रुपए प्रति घंटे है। लेकिन योजना की विफलता के कारण गरीब किसान निजी ट्रैक्टरों का उपयोग करने को मजबूर हैं। जिनका किराया हजार से 12 सौ रुपए प्रति घंटे तक है। इस स्थिति से किसानों को कृषि करना काफी महंगा साबित हो रहा है।
जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान
इस मामले में कृषि विभाग के अधिकारियों का रवैया भी सवालों के घेरे में है। जिम्मेदारों को जिले में कस्टम हायरिंग योजना के तहत उपलब्ध ट्रैक्टर और उपकरणों की संख्या के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी है। इससे पता चलता है कि योजना के क्रियान्वयन को लेकर जिम्मेदार कितने संजीदा हैं।
किसान बोले. योजना नहीं पता, यदि लाभ मिला, तो आवेदन करेंगे
बटियागढ़ के अगारा निवासी जाहर लोधी, फुुटेरा के पंचम लोधी, अनरथ ने बताया कि हमें इस योजना की कोई जानकारी नहीं है। हम लोग गांव के बड़े किसानों से किराए पर ट्रैक्टर किसानों खेती करते हैं। वहीं किसानों का कहना है कि योजना को लेकर विभाग को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। ताकि जरूरतमंद किसानों को इसका लाभ मिल सके। यदि हमें लाभ मिला तो जरूर आवेदन करेंगे।