51 फुट कीर्ति स्तंभ का लोकार्पण
सहस्त्रकूट जिनालय का शिलान्यास
Bade Baba’s consecration in Kundalpur
दमोह. प्रसिद्ध जैन तीर्थ कुंडलपुर में रविवार का दिन विशेष रहा, जिसमें समाज श्रेष्ठियों द्वारा सुबह की बेला में बड़े बाबा का अभिषेक व शांतिधारा की गई। दोपहर में 51 फुट मार्बल से निर्मित कीॢत स्तंभ का लोकापर्ण किया गया। इसके साथ 1008 प्रतिमाओं का सहस्त्रकूट जिनालय का शिलान्यास किया गया। जिसमें पद्मासन व खडग़ासन 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान होंगी।
प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर अपने विकास के नए आयाम स्थापित कर रहा है, बड़े बाबा की प्रतिमा के लिए भव्य मंदिर निर्माणाधीन है। वहीं सफेद मार्बल से 51 फुट का संयम स्वर्ण कीर्ति स्तंभ कोलकाता के विनोद किरण काला ने बनवाया है, उन्हीं के कर कमलों से शिलान्यास कराया गया। इसके बाद कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के अत्याधुनिक नवीन कार्यालय का शुभारंभ भी समाज के श्रेष्ठियों के करकमलों से कराया गया। दोपहर 2 बजे मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें सहस्त्रकूट जिनालाय का शिलान्यास अशोक पाटनी किशनगढ़ राजस्थान द्वारा किया गया।
क्रेन से स्थापित की गई चाबी
पंच बालयति मंदिरों की चाबी स्थापना भी गई। बड़ी शिला रूपी चाबी को जब बड़ी क्रेन से स्थापित किया गया तो इसे देखने के लिए हजारों श्रावकों की निगाहे क्रेन से हवा में लटक रही शिला पर टिकी रहीं। जैसे ही क्रेन ने चाबी रखी तो घनघोर बारिश होने लगी। इस नजारों को अपने कैमरों में कैद करने के लिए प्रत्येक श्रावक का मोबाइल चालू हो गया था। पूर्व दिशा की चाबी की स्थापना विनोद काला कोलकाता द्वारा की गई। पश्चिम की दिशा की स्थापना प्रेमचंद सागर ने की।
भीगते हुए पंडाल में पहुंचा मुनिसंघ
कुंडलपुर के विशेष मंच पर जब ऊपर के मंदिर में नीचे से मुनि संघ पहुंचा तो तेज बारिश होने लगी थी। इसके बाद जब प्रवचन शुरू हुए तो बारिश थम गईं। इसके बाद फिर कार्यक्रम समापन के बाद तेज बारिश होने लगी। मंचीय कार्यक्रम में मंगलाचरण अनुश्री द्वारा प्रस्तुत किया गया। चलने में असमर्थ वृद्धजनों को उनके परिजन गोदी में लेकर कार्यक्रम स्थल व बड़े बाबा के मंदिर पहुंचे।
श्रेष्ठियों को किया स्मृति चिह्न से सम्मानित
मंदिर निर्माण में आगे बढ़कर भूमिका निभाने वाले श्रेष्ठियों व अतिथियों को स्मृति चिह्न से सम्मानित किया गया। इसके बाद क्षमावाणी पर्व का आयोजन किया गया। जिसमें कमेटी की ओर से सभी को भोजन कराया गया। शाम 7 बजे से बड़े बाबा की महाआरती की गई। जिसमें समाज श्रेष्ठीजनों की मौजूदगी रही। जिसमें मंगल गीत भजनों की प्रस्तुति दी गई। मंच संचालन प्रतिष्ठाचार्य जिनेश भैया जबलपुर व अमित पड़रिया जबलपुर ने किया। कमेटी की ओर अध्यक्ष संतोष सिंघई ने आभार प्रकट किया गया।
ज्ञान औषधि के रूप में कार्य करता
कार्यक्रम के दौरान मुनि समय सागर के प्रवचन हुए। जिसमें उन्होंने कहा कि मनुष्य पर्याय बहुत महत्वपूर्ण पर्याय है। सौधर्म इंद्र आदि पद संयम के फलस्वरूप ही प्राप्त होते हैं। तप से नहीं मिलते रत्त्रय की आराधना से प्राप्त होते है। अज्ञानी का तप स्वर्ग दिला सकता है, लेकिन स्वर्ग नहीं दिला सकता है। सौधर्म इंद्र के पास अतुल ज्ञान भंडार होता है। लेकिन ज्ञान में सुगंधि चरित्र के कारण आती है। फूल सुंदर हैं, तोडऩे की इच्छा होती है, लेकिन उसमें सुगंधि नहीं, क्योंकि वह कागज का फल है। रत्त्रय के अभाव में ज्ञान का मूल्य नहीं है। ज्ञान औषधि के रूप में कार्य करता है। भगवान पूजा से प्रसन्न नही होते प्रभावित नहीं होते। प्रसन्न उनकी आज्ञा का पालन करते हैं, तब प्रसन्न होते हैं। आदेश का पालन आज्ञा सम्यक्तव है। गुरु भगवान से कम नहीं है। क्योंकि भगवान की पहचान गुरु ने कराई है। संस्कार गुरुओं से ही डलते हैं, पल्लवित होते हंै। हृदय में आज्ञा जगाने वाले गुरु ही होते हैं। गुरु को यदि प्रकाश मिला है, तो गुरु के द्वारा मिला है। आत्मा पर दृष्टि रखने के लिए बहुत साधना की आवश्यक्ता होती है।जो गुणी होता है, वह देव शास्त्र गुरु के प्रति समर्पण का भाव रखता है। सम्यगदृष्टि की प्रशंसा होती है। यह पुण्य एकत्र करने का महान आयोजन है। इसके लिए आचार्य महाराज के आशीर्वाद है। सिद्धक्षेत्र का प्रभाव अद्भुत प्रभाव होता है।
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