किसान मोहन सिंह लोधी, अजय अहिरवार, हीरासींग गोंड का कहना है कि सोयाबीन राज्य की मुख्य फसल है और प्रदेश में सोयाबीन फसल ही किसानों की आर्थिक उन्नति का मुख्य स्त्रोत है। दिन-प्रतिदिन सोयाबीन की फसल उन्हें घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस फसल की उत्पादन लागत बढ़ती जा रही और कीमत घटती जा रही है। अगर फसल के दाम नहीं बढ़ाए जाते तो किसानों को यह घाटे का सौदा साबित होगा, जिससे छोटे और मंझोले किसान कर्ज तले दब जाएंगे।
किसान मुकेश पटेल ने बताया कि सोयाबीन का समर्थन मूल्य 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है, लेकिन इस भाव से बहुत कम दाम पर सोयाबीन मंडियों और व्यापारियों द्वारा खरीदा जा रहा है। जिससे किसानों को लगभग १ हजार से तेरह सौ रुपए का घाटा हो रहा है। जबकि दूसरी ओर डेढ़ माह बाद नया सोयाबीन आने वाला है। मंडियों में 4000 रुपए प्रति क्विंटल किसानों को दाम मिल रहे हैं। इसमें किसानों को लागत खर्च निकलना भी मुश्किल जाएगा।
भारतीय किसान संघ के प्रांतीय पदाधिकारी रमेश यादव ने बताया कि सरकार की गलत नीति के कारण सोयाबीन के भाव नहीं बढ़े हैं। वहीं किसानों द्वारा जो खेती किसानी में वस्तुएं इस्तेमाल की जाती है। उनके दामों में काफी बढ़ोतरी हुई है। खाद, दवाई, मजदूरी सारी चीजों में बहुत बढ़ोतरी हुई है। सरकार को किसानों के हित में आयात-निर्यात नीति पर गंभीरता से काम करना होगा। किसान सोयाबीन का मूल्य 6000 रुपए प्रति क्विंटल तय होना चाहिए। इस पर सरकार को विचार करना चाहिए।
सोयाबीन खरीदी के लिए १० केंद्र निर्धारित किए गए हैं। खरीदी अभी शुरू ही हुई है। ३१ दिसंबर तक का समय है। किसान रुक कर भी आ सकते है।
इंद्रपाल सिंह राजपूत, प्रबंधक विपणन