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जशपुर नगर

जिला मुख्यालय से ठीक लगे पहले गांव में ही निकला उज्जवला योजना का दम

सारूडीह के कई हितग्राहियों ने २०१६ से नहीं कराया गैस का रिफिल, घर घर में जल रहे लकड़ी चूल्हे

जशपुर नगरJul 09, 2018 / 12:48 am

Barun Shrivastava

Jashpur Nagar

जिला मुख्यालय से ठीक लगे पहले गांव में ही निकला उज्जवला योजना का दम

जशपुरनगर. जशपुर जिले को पूरी प्रदेश में ख्याति दिलाने वाली उज्जवला योजना की जमीनी हकीकत जिले के आला अधिकारियों और इस योजना को लेकर दम्भ भरने वाले यहां के जनप्रतिनिधियों हताश नहीं तो परेशान करने वाली तो जरूर है। जशपुर जिला मुख्यालय से दक्षिण-पश्चिम की ओर महज २ किमी की दूरी पर स्थित पहले ग्राम पंचायत सारूडीह में ही जब केन्द्र सरकार की सर्वाधित प्रचारित और महत्वकांक्षी उज्जवला योजना योजना की हमने जमीनी हकीकत जाननी चाही तो इसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले निकले। योजना में शासन-प्रशासन के स्तर पर भी कई खामियां दिखाई दी और स्थानीय ग्रामीणों में भी कुछ को छोड़ दें तो अधिकांश लोगों में गैस के चूल्हे को लेकर हताश करने वाले स्तर तक उदासीनता दिखाई दी। ग्राम पंचायत सारूडीह की महिला सरपंच और सचिव ने बताया कि २०११ के सर्वे में ग्राम पंचायत क्षेत्र के ३५० हितग्राही को उज्जवला योजना के लिए चिंहित किया गया है जिनमें से अब तक २१४ हितग्राही परिवारों को गैस के चूल्हे और सिलेण्डर प्रदान कर दिए गए हैं, लेकिन कई परिवारों ने तो २०१६ से लेकर अभी तक सिलेण्डर को रिफिल ही नहीं कराया है और गांव के हर घर में जंगल से गांव के लगे होने से पारम्परिक लकड़ी के चूल्हे जल रहे हैं। गांव का जायजा लेने के दौरान अलबत्ता एक ग्रामीण महिला जेम्मा तिग्गा मिली जिसने बताया कि उसके घर में परिवार का पूरा खाना गैस के चूल्हे पर ही पकता है और उनका गैस का सिलेण्डर करीब २ माह चलता है। कुछ लोगों को गैस चूल्हें की आदत हो जाने के बाद वे इसका उपयोग तो कर रहे हैं। लेकिन अधिकांश लोगों के द्वारा पहली बार गैस खत्म हो जाने के बाद गैस को फिर से रिफिल ही नहीं करावाएं और फिर से लकड़ी के चूल्हें का उपयोग करना शुरू कर दिए हैं। सिलेंडर भरवाने के लिए 800 कहां से लाएं : ग्रामीण क्षेत्रों की कई ऐसे महिला हैं जिन्होने खुलकर अपनी व्यथा बताई। वह कहती है कि सरकार की योजना अच्छी है, गैस सिलेंडर और चूल्हा उन्हें शासन की ओर से मिल गया। मगर सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए आठ सौ रुपये कहां से लाएं, शासन से मिलने वाली सब्सिडी का पैसा तो बाद में आएगा। महिलाओं ने कहा कि हर महीने आठ सौ रुपये ईंधन पर खर्च करना आसान नहीं है वह मुश्किल से दिन में रोजी मजदूरी कर १०० से १५० रुपए तक ही कमा पाती हैं और उसी पैसे से उन्हें अपने परिवार का भरण पोषण करना पड़ रहा है। ऐसे गैसे रिफिल करवाने में उन्हें अतिरिक्त भार पड़ेगा।
शिविरों में हो रहा गैस कनेक्शन का वितरण: शासन प्रशासन के द्वारा जिले में लगाए जाने वाले शिविरों में ग्रामीणों को कई शासकीय योजनाओं के संबंध में विस्तार से बताया जाता है और उन्हें शासकीय योजनाओं का पूरा पूरा लाभ लेने की अपील भी की जाती है। यहां तक कि जिले में आयोजित होने वाले सभी शासकीय शिविरों के साथ-साथ मंत्री एवं मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में भी ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं को गैस चूल्हा और सिलेंडर दिया जा रहा है।
अब भी हो रहा लकड़ी के चूल्हे का उपयोग : शासन प्रशासन के द्वारा ग्रामीणों को उज्जवला योजना के अंतर्गत गैस सिलेंडर मुहैया करा देने के बाद ग्रामीणों के द्वारा एक माह तक तो गैस चुल्हें का उपयोग किया गया । लेकिन जैसे ही उनका सिलेंण्डर खत्म हुआ उसके बाद वे उसकी रिफलिंग में ध्यान ना देते हुए उसका उपयोग ही बंद कर दिए। आज भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग जंगलों से लकड़ी लाकर लकड़ी के चूल्हें का उपयोग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें गैस रिफिल करवाने में अतिरिक्त भार उठाना पड़ेगा इसलिए वे इसे रिफिल नहीं करवाना चाहते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पूरे जिले में उज्जवला योजना के अंतर्गत लाभाविंत हुए लोगों में से मात्र ७० से ८० लोग ही नियमित अपने गैस का रिफिल करवा कर उपयोग कर रहे हैं। जबकी ग्रामीणों को गैस मुहैया कराने के लिए बकायदा ग्राम पंचायतों में वाहन भी जाता है उसके बाद लोग रिफिल करवाने में अपनी कोई रुची नहीं दिखा रहे हैं।

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