scriptभोपे पर अंधविश्वास ने छीने जीवन, मौत के बाद भी जंजीरों में जकड़ा रहा गर्भवती का शव | Superstition on the exorcist took away the life, the pregnant woman remained chained till death. Superstition on the exorcist took away the life, the body of the pregnant woman remained chained even after death. Superstition on the exorcist took away the life, the pregnant woman remained chained till death. | Patrika News
क्राइम

भोपे पर अंधविश्वास ने छीने जीवन, मौत के बाद भी जंजीरों में जकड़ा रहा गर्भवती का शव

बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ क्षेत्र की मृतका का तेरह दिन चला संघर्ष, जिला अस्पताल में मौत पर पुलिस ने कराया पोस्टमार्टम, परिजन पहले भोपे से कराते रहे इलाज, बांसवाड़ा में नहीं थम रहा भोपों से उपचार कराने का चलन

बांसवाड़ाSep 26, 2024 / 11:33 am

Ashish vajpayee

andhvishwash in rajasthan, Death, Banswara

मोर्चरी में रखा जंजीरों से जकड़ा हुआ मृतक गर्भवती का शव।

वागड़ में चिकित्सा सेवाओं के लगातार विस्तार के बावजूद देहात में झाड़-फूंक करने वाले भोपों पर अंधविश्वास जानें ले रहा है। यह हकीकत कुशलगढ़ क्षेत्र से बुधवार को जंजीरों से जकडक़र लाई गई गर्भवती की दुर्दशा से सामने आई। गुजरात में मानसिक रूप से बीमार हुई युवती का करीब 13 दिन में सही इलाज नहीं कराने और भोपे के चक्कर में पड़ने से हालत इतनी खराब हो गई कि जिला अस्पताल लाने के उसने कुछ घंटों में उसने दम तोड़ दिया। चौंकाने वाला तथ्य यह भी रहा कि मृत्यु उपरांत पुलिस को सूचना देकर शव मोर्चरी भिजवाने तक युवती के गले और कमर पर तालों से जंजीर बंधी रही। मामले में कुशलगढ़ थाने के एएसआई सोहनलाल ने बताया कि इस संबंध में मृतका के पिता ने ही दोपहर बाद रिपोर्ट दी, जिसमें किसी पर कोई आरोप-प्रत्यारोप नहीं था। ऐसे में तहसीलदार बांसवाड़ा दीपक सांखला के निर्देशन में मर्ग दर्ज कर पोस्टमार्टम करवा शाम को शव परिजनों को सौंप दिया गया। अब मामले में आगे जांच होगी।
यों हुआ घटनाक्रम

पीहर खेडिय़ा गांव से लाई गई मृतका के पिता श्यामलाल पुत्र राजेंग गरासिया ने मोर्चरी के बाहर पूछताछ में बताया कि 22 वर्षीया शीतल उसकी छह बच्चों में तीसरे नंबर की संतान थी। पेशे से डंपर चालक गरासिया ने बताया कि गुजरात में मजदूरी करते करीब दस माह पहले वह पाड़ला निवासी शैलेश मईड़ा के साथ हो गई। फिर भांजगड़ा और समझौता हो गया तो नातरा मान लिया गया। फिर शीतल और शैलेश अहमदाबाद जाकर मजदूरी करते रहे। करीब छह माह पहले शैलेश ने शीतल की बेतुकी हरकतों के बारे में बताया।
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फिर गर्भवती भी हुई, तो वहां किसी से इलाज भी कराया पर तबीयत में सुधार नहीं हआ। दिमागी हालत ज्यादा खराब हुई, तो करीब तेरह दिन पहले शीतल खेडिय़ा लाई गई। डॉक्टर को दिखाया पर फर्क नहीं पड़ा। तब गांव के ही भोपे के पास ले गए। काबू में नहीं रह पाने पर उसे जंजीरों से बांधना पड़ा। बुधवार सुबह वह बेहोश हो गई तो ताम्बेसरास्वास्थ केंद्र और फिर सज्जनगढ़ ले गए। वहां से रैफर करने पर बांसवाड़ा लाना पड़ा।
बेसुध थी, सात ग्राम ही था हिमोग्लोबिन

यहां एमसीएच विंग में सुबह करीब दस बजे लाने के बाद प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन शर्मा ने जांचें करवाकर उपचार शुरू किया। डॉ. शर्मा के अनुसार शीतल बेहोश थी। वह जंजीरों से बंधी होने पर आश्चर्य हुआ। एनिमिया से ग्रसित होने के कारण उसका हिमोग्लोबिन सात ग्राम ही था। करीब दस दिन पहले वह बांसवाड़ा लाई गई थी। इससे शीतल के केस की पहले से जानकारी थी। तब फिजिशियन ने जांच कर भर्ती किया, लेकिन परिजन बिना बताए अचानक उसे यहां से ले गए। उसके बाद बुधवार को लाई गई। रक्तअल्पता पर ब्लड बैंक से इंतजाम भी किया, लेकिन दोपहर बाद करीब ढाई बजे उसकी मृत्यु हो गई। इसकी सूचना विभागाध्यक्ष डॉ. पीसी यादव को दी। इसके बाद पुलिस कार्रवाई हुई।

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