जेल की भूल के कारण कैदी के जेल जाने की संख्या में अंतर साफ तौर पर दिख रहा है। सूत्रों की माने तो सतना केंद्रीय जेल में कैदी जीतेंद्र नागर को 7 दिसंबर 2018 को पहली बार लाया गया था। कोर्ट ने उसे 379 के तहत दर्ज प्रकरण में जेल भेजा था। बाद में जमानत हो गई और रिहा हो गया था। उसके बाद 24-अप्रैल 2019 को सतना केंद्रीय जेल में पुलिस ने कोर्ट के आदेश से लेकर पहुंची थी। उस वक्त कैदी के एक हाथ में चोट भी लगी हुई थी। तब से विभिन्न प्रकरणों में जेल बंद रहा। 29 मई को एक प्रकरण में जमानत होती है और जेल प्रबंधन 7.45 मिनट पर रिहा कर देता है। जब गलती वरिष्ठ अधिकारी पकड़े तो दो दिन बाद 31 मई को गिरफ्तार कर कोर्ट में दाखिल किया। इस तरह कोर्ट ने कैदी को दो बार जेल भेजा, जबकि जेल प्रबंधन ने तीन बार जेल में आमद दर्ज करा दी है।
गलती स्वीकारने के बाद भी जेल प्रबंधन सवालों के घेरे में है। कैदी 48 घंटे तक जेल के बाहर था, उन 48 घंटे के दौरान कैदी किसी आपराधिक घटना में शामिल रहा होगा तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? साथ ही जेल प्रबंधन अपने कर्मचारी व अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने से क्यों बच रहा है। मामला संज्ञान में आने के एक सप्ताह बाद भी गलती करने वाले कर्मचारी व अधिकारियों पर विभागीय रूप से अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? डीजी जेल जांच की बात करते हैं, लेकिन अभी तक जांच करने कोई भी अधिकारी सतना नहीं पहुंचा। वहीं पुलिस को सूचना न देना, कोर्ट में पेश न करने? पुलिस व कोर्ट के अधिकार के अतिक्रमण जैसे सवाल का जवाब भी शेष है। हालांकि, 20 जून की सुनवाई में कोर्ट में कई तथ्य स्पष्ट होंगे।
केंद्रीय जेल सतना में कैदी अनिल कुशवाहा की आत्महत्या को जिस कैदी ने सबसे पहले देखा था, उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है। विगत पांच दिन से उसकी तबीयत खराब है। इसके चलते उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी अनुसार कैदी सुरज पिता रामकिशोर वो बंदी था, जिसने 1 मई को कमरे का दरवाजा खोला, तो कैदी अनिल कुशवाहा को फंदे पर लटका देखा था और जेल प्रबंधन को सूचना दी थी। उसी दिन उसकी तबीयत खराब थी। जेल अस्पताल में इलाज हुआ, लेकिन राहत नहीं मिली। दूसरे दिन दो जून को उसे जिला अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया। जहां उसका उपचार जारी है।