तुषिता पटेल की आप बीती…
तुषिता पटेल ने लिखा कि बात 1992 की है, जब वे टेलीग्राफ बतौर में ट्रेनी थीं और अकबर पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में शामिल हुए थे। वे कभी-कभी कोलकाता आते रहते थे। इसी दौरान जब अकबर एकबार कोलकाता आएं तो उनके सहकर्मियों ने पूछा कि क्या तुम एमजे अकबर से मिलना चाहोगी। वो मेरे सीनियर थे लिहाजा में फौरन मैं तैयार हो गई। शाम को अपने सीनियर के साथ मैं भी गई, वो शाम बहुत अच्छी थी। कुछ दिन बाद अकबर को मेरे घर का फोन नंबर मिल गया। उन्होंने मुझे कुछ काम के बहाने होटल बुलाया। कई बार सोचने के बाद मैं जाने के लिए तैयार हुई। कमरे की घंटी बजाने के बाद जब दरवाजा खुला तो मैं हैरान रह गई। मेरे सामने एमजे अकबर अंडरवियर पहनकर खड़े थे। क्या 22 साल कि एक लड़की के स्वागत का ये तरीका सही था?
‘मेरी कमियां बताते हुए मुझे कसकर पकड़ लिया और…’
बात यहीं खत्म नहीं हुई। 1993 में हैदराबाद में एमजे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल में संपादक थे। मैं वहां सीनियर सब एडिटर थी। अकबर कभी कभी वहां आते रहते थे। एक बार जब वे हैदराबाद आए तो मुझे पेज पर चर्चा करने के लिए होटल बुलाया। मुझे कुछ पेज पूरा करना था इसलिए होटल पहुंचते पहुंचते मुझे कुछ देर हो गई। मैं जब होटल पहुंची तो वे चाय पी रहे थे। मेरे पहुंचते ही वह देर से आने और मेरे काम में कमियां निकालते हुए मुझपर चिखने लगे। मैं कुछ बोलने की कोशिश कर पा रही थी। तभी अचानक वह उठे और मुझे कसकर पकड़ लिया और चूमने लगे। उनकी चाय की महक और कड़े मूंछ आज भी मेरी यादों को चुभते हैं। मैं तुरंत खड़ी हुई और तबतक भागती रही जब तक सड़क पर नहीं पहुंच गई। मैंने एक ऑटोरिक्शा लिया और उसमें बैठने के बाद मैं रोने लगी।
‘कॉन्फ्रेंस हॉल में लेकर गए और दोबारा चूमने लगें’
अगले दिन जब मैं ऑफिस पहुंचते मैंने जैसे तैसे नजर बचाकर अपना पेज पूरा किया. एमजे अकबर की टीम में हमेशा स्टाफ की कमी रहती थी। अखबार का काम पूरा करने के लिए कई बार साप्ताहिक अवकाश छोड़ना पड़ता था। ये नियम लगभग सभी पर लागू होता था, क्योंकि हमें अपने काम से प्यार था। मैं एक कोने में बैठकर अपना काम कर रही थी। जब अकबर को मैं ऑफिस में नहीं दिखी तो उन्होंने मुझे खोजने के लिए कुछ लोगों को भेजा। ऑफिस के एक स्टाफ ने मुझसे आकर बताया कि अकबर सर आपको पूछ रहे हैं। मैं सोच रही थी कि जब उनकी फ्लाइट का टाइम हो जाएगा तभी जाकर मिलूंगी। जानबूझकर मैं फ्लाइट के टाइम से कुछ समय पहले उनसे रिसेप्शन के पास मिली। वहां और भी बहुत लोग थे। अकबर ने मुझसे पूछा कि कहां गायब हो गई थी? तुम्हारे पेज को लेकर बात करनी थी इसके बाद वह मुझे खाली कॉन्फ्रेंस हॉल में लेकर गए और मुझे पकड़कर दोबारा चूमने लगें। हारी हुई, शर्मिंदा, आहत और आंसूओं के साथ मैं कॉन्फ्रेंस रूम में ही रही रोने लगी और तबतक रोई जबकर वे बाहर नहीं चले गए। मैं अकबर के बिल्डिंग से जाने का इंतजार करती रही। उनके बाहर जाते ही मैं बाथरूम में गई, अपना चेहरा धोया और अपना बाकी बचा पेज पूरा करने लगी