आईएएस की कोचिंग के लिए दिल्ली के लिए निकला था सब्जार
बता दें कि दक्षिण कश्मीर में जिला अनंतनाग के संगम नेना गांव का रहने वाला सब्जार जिस समय आतंकी बना, उस समय वह 29 साल का था। घरवालों ने बताया कि इसी साल आठ जुलाई को वह अपने एक दोस्त के साथ दिल्ली रवाना हुआ था। उसके पिता बशीर अहमद बट और मां हाजिरा आज भी उस दिन को याद करती हैं, जब उन्होंने अपने बेटे को घर से विदा किया था।
नेट और जेआरएफ की परीक्षा भी पास कर चुका था सब्जार
सब्जार के पिता बशीर अहमद बट ने बताया कि उनके पांच बच्चे थे, अब चार ही रह गए हैं। सभी पढ़े लिखे हैं। बेटा सब्जार 2007 में अनंतनाग के डिग्री कालेज से बीएससी की और उसके बाद भोपाल में एमएससी करने चला गया। उसने जीवाजी विश्वविद्यालय में एमफिल की। यही नहीं उसने असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए नेट की परीक्षा भी पास की। उसने जेआरएफ की परीक्षा भी पास की थी। उसके पास बीएड की डिग्री भी है और तो और वह आईएएस बनने की तैयारी कर रहा था। इसके लिए वह श्रीनगर में कोचिंग करता था, लेकिन फिर उसने दिल्ली में पीएचडी पढ़ाई के साथ कोचिंग करने का मन बनाया।
तीन महीने तक सब्जार से कोई बात नहीं हुई थी
पिता बशीर बताते हैं कि जिस दिन उनका बेटा सुबह घर से निकला था, उसी दिन शाम को आतंकी बुरहान की मौत हो गई थी। इस दौरान घाटी के हालात बिगड़ गए थे इंटरनेट सेवाएं भी बंद हो गई थी, फोन भी नहीं चल रहे थे। इस वजह से उनकी सब्जार से कोई बात नही हुई थी, उन्हें लगा कि वह दिल्ली गया होगा। लगभग तीन महीने उनकी सब्जार से कोई बातचीत नहीं हुई। फिर एक दिन उनके पास पुलिस वाले आएं, उन्होंने सब्जार का एक वीडियो उन्हें दिखाया। उस वीडियो में उनका बेटा हथियार हाथ में लिए अन्य आतंकियों के साथ खड़ा नजर आ रहा था। घर वालों को विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस बेटे के हाथ में किताबे होती थी उन हाथों में एके-47 कैसै आए।
बच्चों को पढ़ाता था सब्जार
बशीर के कहा कि सब्जार कभी बंदूक उठाएगा किसी ने नहीं सोचा था, क्योंकि जब कभी यहां ऐसे हालात बिगड़ते थे तो वह गांव से दूर विस्सु दरिया के किनारे जाकर बैठ जाता था। उसने संगम चौक में असेंट नाम से कोचिंग सेंटर भी शुरू किया था। यहां उन छात्रों से फीस नहीं ली जाती थी जो पैसे देने में असमर्थ थे। सब्जार को जब पता चलाता था कि ऐसे बच्चों से फीस मांगी जा रही है तो वह अध्यापकों पर बिगड़ जाता था। उसकी इच्छा थी की यहां चारों तरफ लोग अच्छी तरह पढ़े लिखें। लेकिन उन्हें आज भी समझ नहीं आ रहा कि पढ़ा-लिखाई का शौकीन सब्जार कैसे एक आतंकी बन गया? कैसे उसने किताबों की जगह हथियार उठा लिए?