scriptRajasthan Samachar : राजस्थान में यहां छत पर दूसरी मंजिल नहीं बनाते लोग, दिलचस्प है 700 साल पुरानी अनूठी परंपरा की वजह | Rajasthan Samachar: People do not build second floor on the roof here in Rajasthan, the reason behind this 700 year old unique tradition is interesting | Patrika News
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Rajasthan Samachar : राजस्थान में यहां छत पर दूसरी मंजिल नहीं बनाते लोग, दिलचस्प है 700 साल पुरानी अनूठी परंपरा की वजह

इस गांव को उड़ सारण नाम के व्यक्ति ने बसाया तो इसका नाम उड़सर पड़ा। गांव में वर्तमान में 450 के आस पास घर है। गांव में सदैव ही सौहार्द पूर्ण माहौल बना रहता है। उड़सर गांव तहसील मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहां पर सभी जाति के लोग निवास करते हैं।

चूरूMay 23, 2024 / 03:18 pm

जमील खान

रमेश गौड़
Sardarshahar News : सरदारशहर. तहसील का गांव उड़सर एक ऐसा गांव है जहां आज भी मकान की छत पर मकान नहीं बनाया जाता है। क्योंकि ग्रामवासी किसी अनहोनी होने की आशंका के कारण दूसरी मंजिल नहीं बनाते हैं। इसलिए इस गांव में एक भी दुमंजिला मकान नहीं हैँ। एक ओर क्या गांव और क्या शहर डबल-ट्रिपल स्टोरी मकान बनाने की होड़ मची है लेकिन उड़सर गांव में दूसरी मंजिल पर मकान नहीं बनाने की पंरपरा सुन आश्चर्य होता हैं। यहां कोई भूकंप आदि का खतरा नहीं है कि छत पर मकान नहीं बनाया जाए बल्कि वर्षों पुरानी एक ऐसी मान्यता है जिसको लेकर आज तक यहां के ग्रामीण अपने घर की छत पर मकान बनाने की हिमत नहीं की हैं।
Churu News : उड़ सारण ने बसाया गांव
मंजिल पर मकान नहीं बनाने के पीछे जब गांव के लोगों से पड़ताल की गई तो गांव की रहस्यमई सच्चाई सामने आई। बताया जाता है इस गांव को उड़ सारण नाम के व्यक्ति ने बसाया तो इसका नाम उड़सर पड़ा। गांव में वर्तमान में 450 के आस पास घर है। गांव में सदैव ही सौहार्द पूर्ण माहौल बना रहता है। उड़सर गांव तहसील मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहां पर सभी जाति के लोग निवास करते हैं।
Rajasthan News : 700 साल से नहीं बन रहे छत पर मकान
बताया जाता है कि सात सौ साल से दूसरी मंजिल पर मकान नहीं बन रहे हैं। गांव के कुछ जानकर बुजुर्ग बताते हैं कि पिछले सात सौ साल से इस गांव में कोई दो मंजिल का मकान नहीं बना रहा है। जिसे यहां की स्थानीय भाषा में माळिया या चौबारा कहते हैं। गांव के लोग इसके पीछे कई किवदंतियां सुनाते हैं। ग्रामीणों का मानना है की 700 साल पहले भोमिया नाम के एक गोभक्त हुए। गोभक्त भोमियाजी का पास ही के गांव आसपालसर ससुराल था। भोमियाजी की गायों में गहरी आस्था थी।
गायें चुरा लेने पर हुआ युद्ध
बताया जाता है कि एक समय गांव में कुछ चोर आए और वह गायों को चुरा कर ले जाने लगे। इस पर भोमियाजी का उन लुटेरों के साथ युद्ध हुआ। जिसमें वे घायल हो गए। घायल अवस्था में ससुराल में बने माळिये में उन्होंने शरण ली और ससुराल वालो को बोल दिया कि कोई आये तो बताना मत। लेकिन लुटेरे आये और ससुराल वालों से जब मारपीट की तो उन्होंने बता दिया की भोमिया माळिए में हैं तभी उन लोगो ने भोमिया का सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर भी वे अपना सिर हाथ में लिए हुए उनसे लड़ते रहे। भोमियाजी लड़ते-लड़ते अपने गांव की सीमा के समीप आ गए।
गांव में गिरा धड़, जहां बना है मंदिर
जाबाज भोमिया जी संघर्ष कर रहे थे कि इस दौरान उनका लड़का भी मारा गया। वहीं भोमियाजी का धड़ उड़सर गांव में आकर गिर गया। जहां पर आज भोमियांजी महाराज का मंदिर बना हुआ है। पूरा गांव पूजा अर्चना करते हैं, ग्रामीणों की उनके प्रति गहरी आस्था हैं।
पत्नी बन गई सति
भोमियाजी वीर गति को प्राप्त हुए तो उनकी पत्नी सति बन जाती है ग्रामीणों का आह्वान करती है कि यदि उन्हें सुरक्षित रहना है तो अपने घर की छत पर कभी माळिया नहीं बनाना। इसलिए ग्रामवासियों का मानना है कि भोमिया छत पर बने माळिये में गए तो लुटरों ने उन्हें देख लिया, जिससे उनकी मृत्यु हुई, लोग कहते हैं कि यदि वे माळिये में नहीं जाते तो शायद यह घटना नहीं होती।
उस दिन से नहीं बनते हैं छत पर मकान
ग्रामीणों की माने तो उसी दिन के बाद आज तक कोई भी व्यक्ति अपने मकान की छत पर माळिया या दूसरी मंजिल नहीं बनाते हैं। ग्रामीण कहते कि किसी ने अपने घर की छत पर मकान बनाने का प्रयास भी किया है तो उसे जानमाल का नुकसान हुआ हैँ। इसलिए आज भी लोग दूसरी मंजिल बनाने से बचते हैं।
पढ़े लिखे भी मानते है परंपरा को
गांव में सरकारी नौकरी करनेवाले और पढ़े लिखे लोग है लेकिन वे उसी पुरानी पंरपरा का सम्मान करते हैं और वे कहते हैं कि अंध विश्वास नहीं है। यह एक ऐसी पंरपरा है जो गांव के मान-समान और आस्था से जुड़ी है इसलिए इसे ग्रामीण तोडऩा भी नहीं चाहते हैं। गांव में चाहे जितना पैसेवाला हो लेकिन दो मंजिला मकान नहीं बनाते हैं।
आस्था का केन्द्र है भोमिया मंदिर
गांव उड़सर का भोमियाजी का मंदिर आस्था का केन्द्र बना हुआ हैं। गांव के ही नहीं बल्कि आसपास के लोग भी मंदिर में आकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। गांव का व्यक्ति यदि भूल भी जाता है तो उसके कार्य में बाधा आती है। साल में समय समय पर मंदिर में जागरण आयोजित होते हैं तो उनकी स्मृति शेष दिवस पर लोकदेव रूप में मान्यता प्राप्त भोमियाजी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अंचल में पूजे जाते हैं भोमिया जी लोकदेव के रूप में भोमियाजी केवल उड़सर गांव में ही नहीं बल्कि थळी अंचल में इनकी पूजा अर्चना की जाती है। त्यौहारी सीजन में अंचल के घर-घर में भोमियाजी की धोक लगाई जाती है।

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