आक्या के साथ मजबूत पक्ष यह रहा कि भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ताओं ने उनका साथ नहीं छोड़ा। आक्या के समर्थन में कुछ पदाधिकारियों ने इस्तीफे भी दिए। पार्टी पदाधिकारियों को छोड़ अधिकतर कार्यकर्ता आक्या के साथ रहे। इन्हीं के दम पर उन्होंने जीत की इबारत लिखी।
टिकट कटने के साथ ही आक्या ने चुनावी रणनीति पर काम शुरू कर दिया। उन्होंने हर वर्ग के साथ बैठकें की। फिर चाहे महिलाएं, पेंशनर्स हों या फिर विभिन्न समाज सभी के साथ आक्या ने बैठक की और अपना दावा मजबूत किया। आक्या दस साल से विधायक थे। दो बार चुनाव लड़ने और जीतने का अनुभव उनके काम आया। आक्या ने बूथवार रणनीति बनाई। पुरानी टीम के ज्यादातर लोगों ने आक्या का साथ दिया। आक्या के कदम जीत की ओर बढ़ते चले गए।
चुनाव में आक्या का सामना कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह जाड़ावत और भाजपा के नरपत सिंह राजवी से था। जाड़ावत को राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त था। वे दो बार चित्तौडग़ढ़ से विधायक भी रह चुके थे, वहीं राजवी भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके थे। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत का परिजन होने का गर्व भी उनके साथ था। इसके बावजूद आक्या ने जनता को साथ ले निर्दलीय के रूप में दोनों महारथियों को पछाड़ जीत हासिल की।
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राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिले विधायक आक्याभाजपा से बागी होकर चित्तौडग़ढ़ विधानसभा सीट से विधायक बने चंद्रभान सिंह आक्या लगातार भाजपा नेताओं के सम्पर्क में है। वे गुरुवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मिले। इससे पहले वे भाजपा के वरिष्ठ नेता ओम प्रकाश माथुर से भी मिले। आक्या की जगह पार्टी ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी को टिकट दिया था। इसके बाद आक्या बागी हो गए और चुनाव लड़े। आक्या विधायक बन गए, जबकि राजवी की जमानत जब्त हो गई।