लगातार रोगों के हमले ने अफीम उत्पादकों का दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली हैं। मृदुरोमिल से मुकाबला कर रही यह फसल अब लाही की चपेट में भी आ गई है। कई जगह से तना सडऩे की भी शिकायतें आ रही हैं।
फफूंदजनित मृदुरोमिल रोग के बीजाणु जमीन में रहते हैं और बुवाई के बाद ये पौधों पर हमला शुरू कर देते हैं। जिन खेतों में अफीम की बुवाई की जाती है, उनमें गत बार की फसल के रोगग्रस्त अवशेष जमीन में ही रह जाते हैं। अगली बार जब बुवाई की जाती है तो यह रोग फिर फसल पर हमला कर देता है।
अफीम की फसल में पौधों की पत्तियां पीली पडऩे लगी हैं। कई जगह यह टेढी-मेढी हो गई है और कई जगह अफीम के पौधे बौने हो गए हैं। इनकी पहचान दूर से ही की जा सकती है। कई जगह पौधों के डण्ठल ऐंठ गए हैं और कई जगह फसल के तने सडऩे के कगार पर हैं।
मृदुरोमिल और तना सडऩ के चलते पौधों की कलियां खिलने में दिक्कतें आ रही हैं। डोडे नहीं बन पा रहे हैं। कई खेतों में तो अफीम के पौधे सूखना शुरू हो गए हैं। पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बों की शिकायत सामने आने लगी है। हालत यह है कि रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ फेंकने के बाद भी रोग पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।
फसल चक्र अपनाकर किया जा सकता है बचाव सहायक कृषि निदेशक शंकरलाल जाट ने बताया कि इस रोग का सबसे अच्छा समाधान फसल चक्र अपनाना है। इसके अलावा रेडोमिल एमजेड 0.2 प्रतिशत घोल के तीन छिडक़ाव 30, 50 और 70 दिन बाद करके रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यानी दस आरी में 250 ग्राम रेडोमिल का छिडक़ाव किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि तना सडऩ की समस्या बोरोन की कमी, अनियमित सिंचाई नहीं करने तथा खड़ी फसल में डीएपी का प्रयोग जैसे कारणों से हो रही है। तना सडऩ की समस्या से निपटने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 12 ग्राम प्रति दस आरी में छिडक़ाव करना चाहिए।