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छिंदवाड़ा

एक सोच जिसने बदल दी शहर की सूरत

मुख्यमंत्री के शहर की यह है दास्तां, क्या बदला और क्या बदलेगा

छिंदवाड़ाApr 03, 2019 / 12:29 am

prabha shankar

Monthly Report of Pollution Control Board

Monthly Report of Pollution Control Board

छिंदवाड़ा. ज्वलंत मुद्दों पर पहले करारी चोट और फिर उसके समाधान तक लगातार पीछे पड़े रहने की जुझारू सोच। पत्रकारिता के इस मापदण्ड को लेकर चलने वाले ‘पत्रिका’ ने छिंदवाड़ा को हमेशा एक नई दिशा दी, वहीं सामाजिक सरोकार से जुड़े अभियान में अपनी सहभागिता दी। इसके अलावा जनसमस्याओं पर आधारित राजनीतिक आंदोलन को प्रमुखता से उठाने की बात हो या समाज की हर आवश्यकता को प्रशासन और सत्ता तक पहुंचाने का उत्त्तरदायित्व हो, अपनी लेखनी से जनहितैषी होने का धर्म बखूबी निभाया है। इसका सकारात्मक परिणाम है कि शहर की सूरत बदल रही है। आगे सम्भाग, स्मार्ट सिटी, मास्टर प्लान और विश्वविद्यालय जैसी चुनौतियां हैं। इसके लिए लगातार लडऩे की जरूरत है। अखबार के पांच साल पूरे होने पर हम साझा कर रहे हैं सकारात्मक पत्रकारिता से बदलाव के कुछ साक्ष्य… जिन्हें इस शहर ने देखा, समझा और महसूस किया।
कचराघर की जगह बनी कॉलोनियां
वर्ष 2014 में पत्रिका ने जब छिंदवाड़ा में प्रवेश किया था तो छोटा तालाब गंदगी, बदबूदार तथा बदहाल नजर आता था। अखबार की लेखनी से इसके सौंदर्यीकरण के लिए लगातार सत्तासीनों का ध्यान आकर्षण किया गया। जनप्रतिनिधियों का ध्यान जाने पर पांच करोड़ रुपए से अधिक की कार्ययोजना बनी। कुछ विवादित मुद्दों के समाधान के बाद तालाब की सूरत बदली। अब तालाब का स्वरूप पहले से बेहतर है।
समाज में एक कहावत है-घूड़े के दिन भी फिरते हैं। सोनपुर रोड में जब सारे शहर का कचरा फेंका जाता था, तब किसी ने इस जमीन पर विकसित कॉलोनी निर्माण की कल्पना नहीं की थी। ‘पत्रिका’ ने लगातार कचरा घर स्थानांतरित करने की क्षेत्रवासियों की मांग को आवाज दी। नतीजा कचरा घर खजरी के समीप जामुनझिरी पहुंचा और अब यहां आनंदम् टाउनसिटी विकसित हो रही है।
पीजी कॉलेज के पास धरमटेकड़ी दो साल पहले तक मॉर्निंग व इवनिंग वॉक करने वालों का स्थल था। इस पर समाजसेवी ही अपने श्रम से प्लांटेशन लगाया करते थे। पर्यावरण संरक्षण को लेकर पत्रिका की लगातार खबर पर शासन-प्रशासन का ध्यान गया। नगर निगम द्वारा दो करोड़ रुपए से पार्क मंजूर करते ही इस क्षेत्र के हालात बदल गए। अब यहां सुंदर वाटिका विकसित हो रही है। आने वाले समय में यह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र होगा।
ये हैं ऐसी चुनौतियां, जिस पर आगे लडऩा होगा
1.छिंदवाड़ा जिले को सम्भागीय मुख्यालय का दर्जा दिए जाने की घोषणा वर्ष 2008 में की गई थी। इस घोषणा में सिवनी और बालाघाट जिले को मिलाकर सम्भाग बनाना था। घोषणा को दस साल हो गए, अभी तक पूरा नहीं हुआ।
2.विश्वविद्यालय की मांग-छिंदवाड़ा में सतपुड़ा विश्वविद्यालय की मांग को लेकर दो दशक से आंदोलन हो रहे हैं। जिले के प्राइवेट और सरकारी करीब 50 कॉलेज को सागर विश्वविद्यालय के केंद्रीय दर्जा मिलने के बाद जबलपुर विश्वविद्यालय से जरूर जोड़ दिया गया है, लेकिन अपेक्षित रिजल्ट नहीं मिल रहे हैं। छात्र जगत हैरान-परेशान है।
3.प्रतियोगी परीक्षा सेंटर भी बने- जिले की छात्र प्रतिभाएं इस समय एक बड़ी समस्या से जूझ रही हैं। किसी भी ऑनलाइन प्रतियोगी परीक्षाओं का फॉर्म भरो तो इसका सेंटर जबलपुर या फिर भोपाल होता है। ऐसे में छात्र-छात्राओं को धन-समय खर्च कर यहां जाना पड़ता है। स्थानीय पीजी कॉलेज में ही सर्वसुविधायुक्त प्रतियोगी परीक्षा सेंटर खोल दिया जाए तो छात्र जगत को यह राहत मिल सकती है।
4.मप्र और महाराष्ट्र की सीमा पर प्रस्तावित सिंचाई प्रोजेक्ट सलाईढाना, बराज और उसके संशोधित रूप जामघाट प्रकल्प पर ध्यान दिया जाए। इस पर दोनों राज्य सरकारों के बीच बातचीत लागत को लेकर अटक गई है।
5.छिंदवाड़ा के नए कोयला खदान प्रोजेक्ट पर दिलाना होगा। सिंगोड़ी से लगे जंगल के नीचे पड़ा कोयला भंडार अपने दिन फि रने की आस में है। जिले में रोजगार के अवसर बढ़ाने का एक बड़ा माध्यम बन सकता है। कोयलांचल के शारदा-धनकसा समेत अन्य कोयला प्रोजेक्ट अलग लटके हुए हैं।
6. हर्रई-बटकाखापा और तामिया अंचल की वनोपज चिरोंजी से व्यापारी तो करोड़पति हो गए पर आदिवासी जहां के तहां हंै। इस पर आधारित उद्योग लगाए जाए तो बड़े पैमाने पर पलायन रुकेगा। वहीं उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।
7. जबलपुर और इंदौर इनवेस्टरमीट में कई उद्योगपतियों ने छिंदवाड़ा में उद्योग लगाने की हामी भरी, लेकिन उसे अभी तक नहीं लगा पाए। मसाला पार्क और सोयाबीन प्लांट भी अलग बंद पड़े हैं।

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