श्रीराम लीला की जब स्थापना हुई, तब और आज के भारत में बहुत अंतर है। समिति के वयोवृद्ध सदस्यों की माने तो उस समय मंच की व्यवस्था नहीं थी, तब बांस-बल्लियों की सहायता से मंच बनाया जाता था। प्रकाश के लिए मशालों की मदद ली जाती थी। प्रचार-प्रसार भी डोंडी पीटकर किया जाता था। कलाकार एक दूसरे का मेकअप कोयले, चंदन, मिट्टी की सहायता से करते थे। भूमि पर बैठने के लिए दर्शक अपने साथ दरी एवं चटाई साथ लाते थे। समय बदला तो मंच भी स्थाई रूप से तैयार हो गया है। कलाकारों का मेकअप पहले वाटर कलर, अब स्किन फ्रेंडली कलर से किया जाता है। प्रचार के लिए सोशल मीडिया सिद्ध सहयोगी बन चुका है। बैक ग्राउंड के लिए पहले पर्दों का प्रयोग शुरू हुआ, अब विशाल एलईडी स्क्रीन दर्शकों का ध्यान खींचती है। मंडल प्रवक्ता, सह निर्देशक एवं नाट्य कलाकार ऋषभ स्थापक ने बताया, “निजी चैनल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर की एक प्रतियोगिता में छिंदवाड़ा की रामलीला को मप्र की प्रथम और देश की सर्वश्रेष्ठ रामलीला का सम्मान मिला है।”