छिंदवाड़ा

Panch Kalyanak Pratishtha Mahotsav: अयोध्या नगरी में संत समागम, भक्ति का अभूतपूर्व दृश्य

– मंगल घट यात्रा से हुआ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का शुभारम्भ

छिंदवाड़ाJan 16, 2025 / 10:58 am

prabha shankar

Panch Kalyanak Pratishtha Mahotsav:

श्री मज्जिनेंद्र आदिनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का बुधवार की सुबह मंगल घट यात्रा से शुभारंभ हुआ। आचार्य विद्यासागर महाराज एवं आचार्य समय सागर महाराज के आशीर्वाद से निर्यापक मुनि प्रसाद सागर महाराज, मुनि पद्म सागर महाराज, मुनि शीतल सागर महाराज के सानिध्य में आयोजित पांच दिवसीय पंचकल्याण प्रतिष्ठा महोत्सव में सुसज्जित अयोध्या नगरी (जेल बगीचा मैदान) पर पहले दिन गर्भ कल्याणक पूर्व रूप के विधान हुए तो भक्ति का अनुपम दृश्य देखने को मिला। ऐसा दृश्य बना जैसे कि धरती पर इंद्रासन जीवंत हो गया हो।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी प्रदीप भैया सुयश, अशोकनगर ने प्रतिष्ठा विधि के अनुसार इन्द्र प्रतिष्ठा की। दोपहर में यागमंडल विधान हुआ, जिसमें पंच परमेष्टि, 24 तीर्थंकर, भूतकाल-भविष्य-वर्तमान के भगवानों का पूजन-अर्चन हुआ। प्रतिष्ठाचार्य के साथ ही ब्रह्मचारी मोनू भैया, सह प्रतिष्ठाचार्य पंडित सुरेश, पंडित सुनील शास्त्री आदि ने यागमंडल विधान सम्पन्न कराया।

सभी पात्र हुए शामिल

विधान में महोत्सव के सभी पात्र शामिल हुए। प्रारंभ में पात्र शुद्धि, सकलीकरण, नांदी विधान, इन्द्रप्रतिष्ठा, अभिषेक, शांतिधारा पूजन हुए। ध्वजारोहण बाझल परिवार ने एवं मंडप का उद्घाटन राजेंद्र कुमार, अंकित और अर्पित परिवार ने किया।

एक साथ धर्म की आराधना का बना केंद्र


प्रवचन के दौरान मुनि प्रसाद सागर महाराज ने कहा कि आपका बड़ा सौभाग्य है कि ऐसे अयोध्या नगरी में आप लोग धर्म की आराधना के लिए जुट रहे हैं। व्यक्तिगत धार्मिक क्रियाएं करना अलग बात है और सामूहिक रूप से पुण्य का उदय होता है। तब एक साथ एक मंच पर एक स्थान पर बैठ करके ऐसे प्रभु की आराधना करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बुधवार की शाम को संगीतमयी महाआरती, विद्वानों के प्रवचन हुए।

इंद्र-कुबेर ने की अयोध्या नगरी की रचना

पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के पहले दिन बुधवार को गर्भ कल्याणक पूर्व रूप के विधान हुए। सौधर्म इंद्रों की सभा लगाई गई। आसन कम्पायमान, नगरी की रचना, माता-पिता की स्थापना, अष्ट देवियों द्वारा माता की परिचर्या, सोलह स्वप्न दर्शन का प्रदर्शन किया गया। सौधर्म सभा में इंद्रों के धर्म चर्चा में इंद्रासन कम्पायमान हुआ। इंद्र ने बताया, महाराजा नाभिराय के घर-आंगन में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभनाथ भगवान माता मरुदेवी के गर्भ में आने वाले हैं। कुबेर-इन्द्र ने अयोध्या की रचना की।

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