छिंदवाड़ा. तीन लोक मिलकर न तो मुझे सुखी कर सकते हैं और न ही दुखी। मेरे सुख दु:ख का कारण मेरी कल्पना मात्र है। पूरा विश्व अपनी मिथ्या कल्पना के कारण दुखी है और अनादि काल से दुखी हो रहा है। जिन्हें हमेशा हमेशा के लिए सुखी होना हो वे अपनी कल्पनाओं को विराम दें। स्वाध्याय भवन गोलगंज में चल रही धर्म सभा में बाल ब्रह्मचारी सुमतप्रकाश ने यह बात कही। सरल एवं वात्सल्यमयी शैली से जिन शासन की मंगल प्रभावना के साथ युवाओं में सदाचार, शाकाहार के साथ धर्म की रुचि जाग्रत कराने वाले सुमतजी ने कहा कि हम व्यर्थ ही कल्पनाएं करते रहते हैं। वास्तव में जिस कार्य का, जिस विधि से, जिस समय जैसा होना हो वैसा ही होता है यह सब निश्चित है हम उसमें अहंकार ममकार कर सुखी दुखी होते हैं। उन्होंने कहा कि हम दूसरों को, परिवार को, समाज को, देश को अपने अनुसार चलना चाहते हैं और प्रत्येक जीव या पदार्थ का परिणमन अपने अनुसार होता है। कोई कार्य अपने अनुसार होता है तो हम कहते हैं कि मैंने किया। इस बात से अहंकार पैदा हो जाता है कि मैं नहीं होता तो यह कार्य कौन करता। अगर वही कार्य विगड़ जाए या न हो तो तुरन्त ही कहता हैं की ईश्वर की यही इच्छा थी। अरे भाई किसी भी कार्य के होने या बनने का श्रेय लेते हो तो उसके नहीं होने का या बिगडऩे का भी श्रेय लो। समय कम है कार्य अधिक है अत: अपनी बुद्धि को सम्यक निर्णय अर्थात आत्म आराधना में लगाओ। अच्छे-अच्छे चक्रवर्ती और राजा महाराज इस संसार को व्यवस्थित नहीं कर पाए। हमे संसार की गति नहीं अपनी मति व्यवस्थित करनी है। मति व्यवस्थित करते ही संसार व्यवस्थित ही जाएगा।