बाजार में मांग बढऩे से जुलाई से अक्टूबर तक लगातार दाम बढ़ते चले गए। कृषि उपज मंडी में थोक भाव 31 रुपए किलो है, तो किराना दुकान और चिल्लर बाजार में 36 रुपए में उपलब्ध है। गेहूं का पैकबंद आटा का न्यूनतम मूल्य 40 रुपए किलो है। इससे गरीब और निम्न मध्यम वर्ग का घरेलू बजट बिगड़ गया है। लोग इस खाद्य महंगाई से तंग हैं। आगे नई फसल आने तक चार माह तक यह स्थिति बनी रह सकती है। पिछले साल 2023 में भी गेहूं के उच्चतम दाम होने पर केन्द्र सरकार की ओर से 27.50 रुपए किलो की दर से भारत आटा का पैकेट निकाला गया था। इस साल ऐसी कोई राहत देने वाली योजना नजर नहीं आ रही है। इससे गरीब परिवार त्रस्त हैं। वे ऐसे आटा का इंतजार कर रहे हैं।
पिछले दो साल पहले वर्ष 2022 की फरवरी-मार्च में रुस-यूक्रेन युद्ध के चलते केन्द्र सरकार ने राशन दुकानों में गेहूं का कोटा घटा दिया था। पहले परिवार के एक सदस्य को पांच किलो गेहूं मिलता था, उसे एक किलो तक सीमित कर दिया गया। इससे 3.76 लाख परिवार रियायती गेहूं कम होने से बाजार पर निर्भर हो गए। इससे बाजार में गेहूं की मांग बढ़ी और दाम बढ़ गए। सरकार की ओर से अभी तक इस गेहूं के अनुपात को दोबारा पांच किलो पर वापस नहीं किया गया है।
इस वर्ष सरकार ने कच्चे खाद्य तेलों पर आयात शुल्क 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 27.5 प्र्रतिशत कर दिया है। इससे सोयाबीन तेल के दाम 25 से 30 रुपए बढ़ गए है। पहले सोयाबीन तेल 100 रुपए लीटर पर था, अब वह 125 रुपए लीटर हो गया है। इसका असर यह है कि हर महीने 5 लीटर खपत वाले परिवार पर 150 से 180 रुपए लीटर का अतिरिक्त खर्च जुड़ गया है।