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छिंदवाड़ा

करोड़ों खर्च और एक साल में सिर्फ 1700 लाभार्थी बच्चे बढ़े

बच्चों के पोषण के साथ औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था के प्रति रुचि कम

छिंदवाड़ाJun 10, 2019 / 12:19 pm

Rajendra Sharma

aaganwari

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बिछुआ, चौरई, जामई में कम गई संख्या

छिंदवाड़ा. बाल विकास परियोजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों के पोषण के साथ उनकी औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। आंगनबाड़ी में जन्म लेने के बाद से छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों का डाटा भी रखा जाता है। बच्चों की उम्र तीन वर्ष होने के बाद तीन साल तक आंगनबाड़ी में पहुंचाया जाता है। यहां उनके खेलकूद, स्वास्थ्य की जानकारी तो रखी जाती ही है उन्हें शुरुआती शिक्षा भी दी जाती है।
जिले में हर साल दर्ज होने वाले बच्चों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वाले बच्चों की संख्या उस अनुपात में दिख नहीं रही है। छिंदवाड़ा की 14 परियोजनाओं का पिछले एक साल का आंकड़ा देखें तो इस दौरान पूरे आंगनबाड़ी केंद्रों का लाभ लेने वाले बच्चे पिछले साल की तुलना में केवल 1700 बढ़े जबकि दर्ज संख्या इससे कहीं ज्यादा रही है। 2018 में लाभार्थी बच्चों की संख्या 76 हजार 79 थी। 2019 में यह 77 हजार 801 रही यानी सिर्फ 1722 बच्चों की संख्या ही इस दौरान बढ़ी। विभाग ने अपने पोर्टल में भी यह आंकड़े डाले हैं। इस वर्ष अप्रैल तक की संख्या दर्ज है। अब इसे अभिभावाकों की आंगनबाड़ी केंद्रों के प्रति रुचि कम कहें या उनमें जागरुकता की ये पता करने का विषय है।
इन क्षेत्रों में कम हो गई संख्या

जिले में बिछुआ, चौरई और जामई तीन परियोजनाएं ऐसी हंै जहां एक साल में लाभार्थी बच्चे कम हो गए। बिछुआ में 2018 में 3299 बच्चे लाभार्थी बताए गए जबकि 2019 में अप्रैल के महीने तक संख्या गिरकर 3274 रह गई। इसी तरह चौरई में भी 2018 के 5818 की तुलना में एक साल में लाभ लेने वाले बच्चों की संख्या गिरकर 5769 पर आ गई। जामई-2 परियोजना में तो सबसे ज्यादा 500 बच्चों का फर्क दिख रहा है। 2018 के 5705 बच्चों की तुलना में यहां 2019 में संख्या घटकर 5200 पर आ गई।
एक कमरे में चल रहे हैं केंद्र

सरकार अपना एक बहुत बड़ा बजट महिलाओं, बच्चों के स्वास्थ्य पर खर्च करती है। उसमें से स्वास्थ्य, पोषण को लेकर ज्यादातर योजनाओं का क्रियान्वयन तो आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए ही होता है। बावजूद इसके आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थितियां बेहतर नहीं हैं। ज्यादातर केंद्र किराए पर चल रहे हैं। शहर में तो ज्यादातर भवन एक कमरे में चल रहे हैं वहां न तो बाथरूम हैं न बच्चों के खेलने की पर्याप्त जगह। आंगनबाड़ी केंद्रों को किराया भी समय पर नहीं मिल पा रहा। बावजूद इसके वर्ष तक की गतिविधियोंं में यहां की कार्यकर्ता-सहायिकाएं संलग्न रहतीं हैं।

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