इन वनोपज से तैयार हो रहे व्यंजन
महुआ, बेर, बेल जैसे वनोपज और कोदो, समा, बसारा, कुटकी जैसे वनोपज से ये व्यंजन तैयार किए जा रहे। जंगल की उपज से तैयार यह आइटम पौष्टिक भी हैं। बुंदेली अनुभूति स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष किरण मिश्रा कहती हैं कि महुआ के लड्डू, महुआ के रसगुल्ला, मुरका, डुबरी, बिजौरे, बेर के बिरचुन, बेर के लड्डु, सोंठ के लड्डू, तिली का मुरका, उड़द दाल की बड़ी, आंवले का हलवा, बेल सेक पाउडर, बुंदेली सत्तू, महुआ कतली, अर्जुन छाल चाय, कचरिया सहित 28 प्रकार के आइटम तैयार किए हैं।
युवा कर रहे पसंद
बुंदेलखंड में लगभग 10 दशक पहले इसे पुरानी पीढिय़ां ये आइटम बना कर खाने में उपयोग करती थी। समय के साथ ये संस्कृति और खाने के आइटम विलुप्त हो गए है। समूह की सचिव ममता पाठक कहती है कि सदस्यों ने हर महीने 1100 रुपए इकठ्ठा किए. शुरुआत में फायदा नहीं हुआ। वनोपज समिति के सचिव सचिव भास्कर खरे, सेल्स मैनेजर जितेंद्र वाजपेयी और क्वालिटी कंट्रोलर प्रिंस वाजपेयी भी हमारे समूह को गाइड करते हैं। खजुराहो में स्टॉल लगाने पर हमें बहुत अधिक मुनाफा हुआ है। ब्लॉक प्रबंधक एकता खरे बताती हैं कि समूह की सदस्यों में बहुत उत्साह है। उन्हें लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। ट्रेडिशनल फ़ूड को खासकर युवा भी पसंद कर रहे।
खजुराहो से मिली नई राह
समूह में सदस्य मरियम भील, रमदा भील, मंजू भील, लछिया अहिरवार, रोशनी अहिरवार, संजो अहिरवार, अनामिका शांडिल्य, चंद्रकांता वाजपेयी, ज्योति नायक है। ये सभी इस काम से जुड़ीं हैं। खजुराहो डांस फेस्टिवल में स्टॉल लगाने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। छतरपुर इलाके में वन विभाग और जिला प्रशासन के साथ जिला पंचायत के अफसर ऐसे और भी समूहों को प्रोत्साहित कर रहे जिससे बुंदेली संस्कृति और विलुप्त होती खाने की परंपरा को लौटा सकें।
इनका कहना है
बिजावर ब्लॉक में समूह ने नई शुरुआत की है. जिले में और भी समूह अलग-अलग कामों से जुड़ें हैं। आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रमोट किया जा रहा है. जिले में काफी संभावनाएं हैं।
तपस्या परिहार,जिला पंचायत की सीइओ