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छतरपुर

जिला अस्पताल के आसपास डॉक्टरों के निजी क्लिीनिक, इसलिए शाम को ओपीडी से हो जाते हैं गायब

जिला अस्पताल में शाम की ओपीडी से अधिकांश डॉक्टरों का गायब रहना एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। कलेक्टर, सीएमएचओ और सिविल सर्जन के बार-बार नोटिस देने के बावजूद डॉक्टरों का बंक मारने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।

छतरपुरDec 23, 2024 / 10:45 am

Dharmendra Singh

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जिला अस्पताल में शाम को इस तरह खाली रहते हैं डॉक्टरों के चैंबर

छतरपुर. जिला अस्पताल में शाम की ओपीडी से अधिकांश डॉक्टरों का गायब रहना एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। कलेक्टर, सीएमएचओ और सिविल सर्जन के बार-बार नोटिस देने के बावजूद डॉक्टरों का बंक मारने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इनकी अनुपस्थिति का मुख्य कारण अस्पताल के आसपास स्थित उनके निजी क्लीनिकों का संचालन है। शाम के समय जब अस्पताल में ओपीडी चलने का वक्त होता है, डॉक्टर वहीं व्यस्त रहते हैं और अस्पताल में मौजूद नहीं होते हैं।

मरीजों को हो रही परेशानी


इसका खामियाजा सबसे ज्यादा अस्पताल आने वाले मरीजों को भुगतना पड़ता है। जिले के तीन दर्जन से ज्यादा डॉक्टर जिला अस्पताल के आधे किलोमीटर दायरे में निजी क्लीनिक चला रहे हैं। डॉक्टरों द्वारा सुबह चेकअप करने के बाद मरीजों से रिपोर्ट शाम को देने का वादा किया जाता है, लेकिन जब मरीज शाम को रिपोर्ट लेकर आते हैं तो उन्हें डॉक्टर से मुलाकात नहीं हो पाती। परिणामस्वरूप, मरीज निराश होकर लौट जाते हैं। जिला अस्पताल में शाम की ओपीडी केवल 5 से 6 बजे तक खुलती है, लेकिन इस दौरान अधिकांश डॉक्टर अपनी निजी प्रैक्टिस में व्यस्त रहते हैं। यही समय उनके निजी अस्पतालों के लिए पीक आवर्स होता है, जिसके कारण वे जिला अस्पताल से गायब रहते हैं।

सार्थक एप का दुरुपयोग


स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, शाम की ओपीडी में डॉक्टरों की अनुपस्थिति कोई नई बात नहीं है। कई डॉक्टर तो ऐसे हैं जो केवल सार्थक एप पर हाजिरी दर्ज कराते हैं और फिर चुपके से अपने निजी क्लीनिक में चले जाते हैं। कुछ डॉक्टर तो महज पांच मिनट के लिए अस्पताल का चक्कर लगाकर वहां से निकल जाते हैं, ताकि रिकॉर्ड में उनकी उपस्थिति बनी रहे।

कई डॉक्टरों पर कार्रवाई, लेकिन सुधार नहीं


जिला अस्पताल में 62 डॉक्टर पदस्थ हैं, जिनमें से इमरजेंसी और नाइट ड्यूटी वाले डॉक्टरों को छोडकऱ सभी को शाम की ओपीडी में मौजूद रहना अनिवार्य है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि अधिकांश डॉक्टर इस नियम का पालन नहीं करते। इस पर नियंत्रण लगाने के लिए कई डॉक्टरों को नोटिस जारी किए गए हैं और कई के एक दिन का वेतन भी काटा जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। सिविल सर्जन डॉ. जीएल अहिरवार भी स्वीकारते हैं कि लाख कोशिशों के बाद भी यह प्रथा बंद नहीं हो पा रही है।

कलेक्टर और सीएमएचओ का निरीक्षण


कलेक्टर पार्थ जैसबाल और सीएमएचओ डॉ. आरपी गुप्ता ने कई बार अस्पताल का निरीक्षण किया है, लेकिन तब भी डॉक्टरों की अनुपस्थिति का मुद्दा सामने आया। सीएमएचओ डॉ. आरपी गुप्ता ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि डॉक्टरों के निजी अस्पतालों का नेटवर्क इतना मजबूत है कि अधिकारियों के निरीक्षण से पहले सूचना मिल जाती है और वे अस्पताल पहुंच जाते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि कुछ डॉक्टर नियमित रूप से ओपीडी में बैठते हैं और उनकी उपस्थिति में सुधार लाने के लिए जल्द ही नए उपायों की योजना बनाई जाएगी।

हाजिरी सिस्टम मजूबत करेंगे


सीएमएचओ ने बताया कि इस मुद्दे पर अंकुश लगाने के लिए हाजिरी सिस्टम को और मजबूत किया जाएगा और बाबुओं को इसमें अधिक सक्रिय भूमिका सौंपने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा, कलेक्टर ने इस समस्या को सुलझाने के लिए एक सख्त एक्शन प्लान तैयार किया है। कमिश्नर को भी इस संदर्भ में प्रस्ताव भेजा जाएगा और जल्द ही सख्त कार्रवाई की जाएगी।

डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर प्रशासन की निगरानी


वर्तमान स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने इस पर कड़ी निगरानी रखने की योजना बनाई है। डॉक्टरों के निजी क्लीनिकों और नर्सिंग होम्स पर नियमित जांच की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे केवल अपनी व्यक्तिगत प्रैक्टिस पर ही नहीं, बल्कि जिला अस्पताल में भी सही तरीके से अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। यह स्पष्ट है कि जिला अस्पताल के डॉक्टरों की अनुपस्थिति एक गंभीर समस्या बन चुकी है, और इससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन को अब इस मामले में सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि अस्पताल में मरीजों को समय पर इलाज मिल सके और डॉक्टरों की अनियमितताओं को रोका जा सके।

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