पशु आहार और कपड़ा निर्माण में खपत
गल्ला आढ़ती रमाकांत गुप्ता ने बताया कि इस वर्ष सफेद ज्वार का व्यापार पहले से कहीं ज्यादा तेज हो गया है। अब यह ज्वार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं, विदेशों में भी सफेद ज्वार की मांग तेजी से बढ़ी है। इसका प्रमुख कारण ज्वार का उपयोग पशु आहार और कपड़ा निर्माण में बढ़ती खपत है। दिसंबर महीने में शुरू होने वाला ज्वार का कारोबार फरवरी के अंत तक जारी रहता है। वर्तमान समय में मंडी में सफेद ज्वार की भारी आवक हो रही है। मंडी सचिव ब्रजेश निगम के मुताबिक रोजाना लगभग 15 ट्रक ज्वार बिक्री के लिए मंडी में पहुंच रहे हैं।मध्यपूर्व के देशों तक सप्लाई
यहां तक कि विदेशी बाजार में भी बुंदेलखंड के सफेद ज्वार की मांग बढ़ी है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और सऊदी अरब, कुवैत, यमन, तुर्की, अफगानिस्तान और मध्य पूर्व के देशों से ज्वार के निर्यात में भी वृद्धि देखी जा रही है। इन देशों में ज्वार का उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है, जो इसकी बढ़ती मांग का मुख्य कारण है। मंडी में ज्वार के कारोबार को लेकर व्यापारियों का कहना है कि अगर इस तरह की बढ़ती मांग और उत्पादन की गति बनी रही, तो अगले कुछ सालों में बुंदेलखंड ज्वार की सबसे बड़ी मंडी बन सकता है। साथ ही, इससे किसानों को भी एक स्थिर और बेहतर आय के अवसर मिलेंगे।
बिट्रिश समय से हो रही विदेशी तक सप्लाई
मोटे अनाज के उत्पादन में बुंदेलखंड की मिट्टी काफी मुफीद है। हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, छतरपुर में ज्वार का उत्पादन होता है। खरीफ की फसलों में इसको किसान उत्पादित करता है। भरूआ समुरेपुर कस्बे की पुरानी गल्ला मंडी ब्रिटिश हुकूमत के समय से ज्वार के खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर है। अंग्रेजी शासन काल में यहां से ज्वार रेल के माध्यम से देश के अन्य प्रांतों में भेजी जाती थी। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान बिछाई गई कानपुर बांदा रेलवे लाइन में कस्बे के रेलवे स्टेशन में माल गोदाम बनाकर यहां से मालगाड़ी के माध्यम से ज्वार के साथ सनाई बाहर भेजी जाती थी। सनाई से रस्सी बनाने के साथ पशुओं का दाना तैयार किया जाता था। अब इसका उत्पादन शून्य हो गया है। लेकिन यहां की सफेद ज्वार की मांग आज भी बरकरार है।