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चेन्नई

आज भी प्रासंगिक है ‘रामचरित मानस’

– दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

चेन्नईMay 04, 2018 / 04:10 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

Two dasy national seminar on Ramcharitmanas held in Kanchi

Two dasy national seminar on Ramcharitmanas held in Kanchi

रामचरित मानस पर सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करना ही इस संगोष्ठी का मुख्य आशय है।

कांचीपुरम. यहां स्थित श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती मानद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की ओर से हाल ही ‘रामचरित मानस और समाज’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई। संगोष्ठी के पहले दिन कुलसचिव आचार्य जी. श्रीनिवासु ने अध्यक्षता की। संगोष्ठी के संयोजक और हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. दंडीभोट्ला नागेश्वर राव ने संगोष्ठी के उद्देश्य बताया कि रामचरित मानस पर सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करना ही इस संगोष्ठी का मुख्य आशय है।
रामचरित मानस का भारतीय समाज पर अपार प्रभाव है

श्रीनिवासु ने ‘रामचरित मानस’ ग्रंथ को ‘भारतीय संस्कृति की धरोहर’ बताया। सत्र में मुख्य अतिथि तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष एसवीएसएस नारायण राजू ने बीज-व्याख्यान में कहा कि रामचरित मानस का भारतीय समाज पर अपार प्रभाव है और नैतिक एवं पारिवारिक मूल्यों की दृष्टि से आज भी रामचरित मानस प्रासंगिक है।
दूसरे दिन तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन
दूसरे दिन तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ। अध्यक्षता सुंदरनार विश्वविद्यालय की पूर्व संकायाध्यक्षा डॉ. भवानी की अध्यक्षता में हुए सत्र में पुदुचेरी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मनोन्मण्यन विशिष्ट अतिथि थे। डॉ. भवानी जी ने कहा तमिल में वाल्मीकि से भी पूर्व ‘अगस्त्य रामायण’ का प्रस्ताव है। डॉ. जयशंकर ने मानस में प्रस्तावित पर्यावरणीय मूल्य-चेतना पर प्रकाश डालते हुए कहा आज के माहौल में रामचरित मानस का पठन-पाठन पर्यावरणीय चेतना के नजरिये से करने की आवश्यकता है।
16 प्रतिभागियों ने प्रपत्र प्रस्तुत किए

संगोष्ठी में तिरुवनंतपुरम, तिरुचिरापल्ली, पेरम्बलूर, मदुरांतकम, पांडिचेरी, हैदराबाद, विशाखपट्टनम, तिरुपति आदि क्षेत्रों के16 प्रतिभागियों ने प्रपत्र प्रस्तुत किए जिनमें रामचरित मानस और वर्तमान समाज, रामचरित मानस की प्रासंगिकता, ‘रामचरित मानस और मलयालम रामकाव्य की तुलना आदि महत्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन हुआ। समापन सत्र कांची विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर नारायण झा की अध्यक्षता में हुआ। उन्होंने प्राकृत भाषा-विज्ञान की पृष्ठभूमि में रामचरित मानस की भाषा-शैली पर विचार व्यक्त किये।

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