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Family Court : कई घटक प्रभावित करते हैं फैमिली कोर्ट में लबित मुकदमेबाजी को

देश में पारिवारिक मसलों और बढ़ते विवाह विच्छेद के मामलों के बीच पारिवारिक कोर्ट में लबित मामलों के दबाव को कम करने के विविध उपायों का दावा नाकाफी साबित हो रहा है। डायवर्स रेट की बात करें तो सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र से हैं जहां कार्यरत पारिवारिक कोर्ट की संया महज 51 हैं। इस दृष्टि […]

चेन्नईJan 21, 2025 / 02:29 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

Family Court
देश में पारिवारिक मसलों और बढ़ते विवाह विच्छेद के मामलों के बीच पारिवारिक कोर्ट में लबित मामलों के दबाव को कम करने के विविध उपायों का दावा नाकाफी साबित हो रहा है।

डायवर्स रेट की बात करें तो सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र से हैं जहां कार्यरत पारिवारिक कोर्ट की संया महज 51 हैं। इस दृष्टि से तमिलनाडु स्वयं को बेहतर स्थिति में पाता है, हालांकि यह बात और है कि यहां कुछ हाई प्रोफाइल दपतियों का हाल में विवाह विच्छेद हुआ है। राज्यसभा में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, मामले 2022 में 25,600 से घटकर 2023 में 22,600 और 2024 में 17,700 हो जाएंगे, जो दो वर्षों में 31% की कमी है। विशेषज्ञों के अनुसार इसकी वजह निजी परामर्श बढ़ता प्रचलन है, जिससे युवा जोड़ों को विवादों को सुलझाने और रिश्तों को सुधारने में मदद मिल रही है।
तमिलनाडु के लोकसभा सांसदों ने देशभर के पारिवारिक न्यायालयों की कार्यप्रणाली और संया समेत अन्य बिन्दुओं पर प्रश्न किए जिनके जवाब में कोर्ट में लबित मसलों की कई वजह बताई गईं। केंद्रीय विधि और न्याय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा, पारिवारिक न्यायालयों में कार्यवाही में विलंब से तनाव बढ़ता है और लंबी अवधि तक भावनात्मक दबाव रहता है, जिससे समय पर विवाद समाधान में बाधा आती है। न्यायालय के नियमों के बावजूद बाल अभिरक्षा, मुलाकात के अधिकार और वित्तीय सहायता पर निर्णयों को लागू करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, जिससे निरंतर संघर्ष और निराशा होती है। इसके अतिरिक्त, न्यायालय में उपस्थित होने के लिए दूसरे शहर की यात्रा करने की आवश्यकता महत्वपूर्ण रसद और वित्तीय बोझ डालती है, खासकर उन परिवारों के लिए जो पहले से ही तनाव में हैं।
पर्याप्त प्रशिक्षण वाले विशेषज्ञ न्यायाधीश

केंद्र सरकार के अनुसार पारिवारिक न्यायालयों में सुधार के लिए पर्याप्त अवसंरचना और पर्याप्त प्रशिक्षण वाले विशेषज्ञ न्यायाधीश प्रदान करना आवश्यक है। निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने, पूर्वाग्रह को कम करने और सभी पक्षों, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए न्यायाधीशों, न्यायालय कर्मचारीवृंद और पक्षकारों को संवेदनशील बनाना जरूरी है। महिला न्यायाधीशों और परामर्शदाताओं की नियुक्ति प्रणाली की प्रभावशीलता को और बढ़ा सकती है।
न्यायिक अधिकारियों की कमी

केंद्र सरकार जिला और अधीनस्थ कोर्ट में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर कार्य कर रही है लेकिन अंतराल एक चौथाई से अधिक है। देशभर में स्वीकृत 25,741 पदों के अनुपात में 20,479 पर ही नियुक्तियां हैं। 31 अक्टूबर 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार फैमिली कोर्ट की कुल संया 850 थी। सर्वाधिक कोर्ट यूपी में 189 हैं और तमिलनाडु में इनकी संया 40 है।
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