सेवा निलंबन सजा नहीं : हाईकोर्ट
मद्रास उच्च न्यायालय का कहना है कि सेवा निलंबन सजा नहीं है।
सेवा निलंबन सजा नहीं : हाईकोर्ट
चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय का कहना है कि सेवा निलंबन सजा नहीं है। यह एक अंतरिम व्यवस्था है जिसके तहत लोक सेवक को उसके दायित्व से निर्वाह से इसलिए रोका जाता है ताकि उस पर लगे आरोप की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो सके।
यह कहते हुए न्यायाधीश एस. एम. सुब्रमण्यम ने बी. धर्मराज की उस याचिका को ठुकरा दिया जिसमें उसने २६ अक्टूबर २०१८ को धर्मपुरी जिला कलक्टर के निलंबन आदेश को चुनौती दी थी। आरोपों की प्रकृति अथवा दोषी अधिकारियों के खिलाफ दी गई शिकायत के आधार पर निलंबन आदेश को लेकर कोई निर्णय नहीं किया जा सकता है। सक्षम प्राधिकारी द्वारा ऐसे तमाम आरोपों, उनके जवाब तथा पेश साक्ष्यों की पड़ताल की जानी चाहिए। उसके बाद चार्ज मेमो जारी किया जाना चाहिए। इस तरह की जांच के वक्त दोषारोपित अधिकारियों की सुनवाई भी होनी चाहिए।
जज ने तेजी से फैलते भ्रष्टाचार को देश के लिए खतरनाक बताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट किसी के साथ रियायत नहीं बरत सकती है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्ट क्रियाओं की वजह से आम आदमी पूरी तरह कुंठित है। हर दिन एक वैधानिक दस्तावेज की प्राप्ति के लिए लोक सेवक को रिश्वत देनी पड़ती है। यह देश में व्याप्त सच्चाई है। सभी उच्चाधिकारियों जिनमें कोर्ट भी शामिल है को इस सच्चाई से वाकिफ होकर ऐसे मामलों का निपटारा करना चाहिए।
याची के अनुसार वह भूमि अधिग्रहण मामलों का विशेष तहसीलदार था। उसे भ्रष्टाचार के आरोप की वजह से निलंबित कर दिया गया। उसका कहना था कि यह निलंबन उस वक्त आया जब उसकी पदोन्नति होनी थी इसलिए इस सजा के रूप में आए इस आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
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