राजगोपाल अपने कर्मचारी की बेटी जीवज्योति से तीसरा विवाह करना चाहता था पर उसने संतकुमार नामक युवक से शादी कर ली। इसके बाद 20०१ में राजगोपाल के लोगों ने संतकुमार की हत्या कर दी थी। जीवज्योति की शिकायत पर 2004 में एक सत्र अदालत ने राजगोपाल को दोषी पाया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। राजगोपाल ने मद्रास उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी तो 2009 में इस सजा को आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया गया। राजगोपाल ने इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील की, मार्च 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को बरकारार रखते हुए उनको आत्मसमर्पण करने के लिए 7 जुलाई तक का समय दिया।