किस तरह दबाव में लिया केन्द्र सरकार ने कैबिनेट में जब कृषि विधेयक पारित किया तभी से कांग्रेस ने विरोध शुरू कर दिया। पंजाब में तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने मानो इन विधेयकों के खिलाफ अभियान ही छेड़ दिया। कांग्रेस नेताओं के साथ सरकार के मंत्रियों ने रोजाना तीखी बयानबाजी की। कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी शिरोमणि अकाली दल पर प्रहार शुरू कर दिए। तब अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसमिरत कौर बादल केन्द्र सरकार में मंत्री थीं। कैप्टन रोज सवाल पूछ रहे थे कि अगर शिरोमणि अकाली दल किसानों की हितैषी है तो किसान विरोधी कृषि विधेयक कैसे कैबिनेट में पास कर दिए गए। बादल की पत्नी ने मंत्री रूप में विरोध क्यों नहीं किया। पंजाब में सुखबीर सिंह बादल लगातार बयान दे रहे थे कि हम किसानों के साथ हैं। धीरे-धीरे किसान कांग्रेस के पक्ष में लामबंद होने लगे। रास्ता जाम, विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। लोकसभा ने कृषि विधेयक पारित कर दिए। अकाली दल को लगने लगा कि कि किसानों का समर्थन चला जाएगा। ऐसे में लोकसभा में ही हरसिमरत कौर के इस्तीफे की घोषणा की गई। रात्रि में इस्तीफा भी दे दिया गया।
राजग क्यों छोड़ा हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बाद कैप्टन ने फिर बयान दिया कि अगर किसानों की हितैषी हैं तो राजग के साथ क्यों हैं? इस्तीफे से पहले ही किसान मजदूर संघर्ष कमेटी ने 25 सितम्बर, 2020 को भारत बंद की घोषणा की थी। अकाली दल ने भी किसानों के लिए 24 सितम्बर को सड़कें जाम की घोषणा कर दी। इस बात पर भी अकाली दल की मुखालफत की गई। 26 सितम्बर को किसानों ने कहा कि अकाली दल दोहरी राजनीति कर रहा है क्योंकि आज भी भारतीय जनता पार्टी के साथ है। मांग की कि राजग छोड़ना चाहिए। अंततः 26 सितम्बर की रात्रि में अकाली दल को राजग से अलग होने की घोषणा करनी पड़ी। आगे क्या कैप्टन के जाल में फँसे अकाली दल के सामने अब कोई रास्ता नहीं बचा है। अकाल दल को लग रहा है किसान अब साथ नहीं छोड़ेंगे। कांग्रेस का कहना है कि अकाली दल अगर किसान हितैषी होता तो कृषि विधेयकों का कैबिनेट में लाए जाते समय ही विरोध करता। पहले तो कृष विधेयकों को पास कराया और अब किसान हित का ढिंढोरा पीटा जा रहा है।
भाजपा पर असर पंजाब में भारतीय जनता पार्टी को शिरोमणि अकाली दल का सहारा है। हालांकि एक गुट अकाली दल से अलग हो गया है, जो भाजपा के लिए अच्छी बात हो सकता है। वैसे भी पंजाब भाजपा के संगठन मंत्री दिनेश कुमार कई बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि पार्टी पंजाब की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। लगता है उनकी बात पूरी हो रही है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि जब तक भाजपा सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी, उसे कैसे मालूम पड़ेगा कि कितने पानी में है। इस तरह भाजपा के सामने नई चुनौती है। कुल मिलाकर पंजाब की राजनीति दिलचस्प हो गई है। ऐसे में पंजाब सरकार किसानों को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए और घोषणाएं कर सकती हैं।