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क्या होता है रेपो रेट, सीआरआर और मॉनिटरी पॉलिसी? क्या हैं इसके घटने-बढ़ने के मायने

बुधवार को रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी की आरबीआई की घोषणा के बाद तीन सरकारी और एक निजी बैंक ने होम सहित दूसरे लोन की ब्याज दरें बढ़ा दी है। अन्य बैंक भी ब्याज दरों को बढ़ाने की तैयारी में जुटी है। रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, मॉनिटरी पॉलिसी सहित बिजनेस और बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी अन्य टर्म की जानकारी आम लोगों को कम ही होती है। यहां जानिए इन टर्मों के बारे में।

May 06, 2022 / 12:37 pm

Prabhanshu Ranjan

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Repo Rate: बीते बुधवार को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी का ऐलान किया था। आरबीआई की इस घोषणा के बाद 24 घंटे बाद भी तीन सरकारी और एक निजी बैंक ने होम सहित दूसरे लोन की ब्याज दरें बढ़ा दी है। जाहिर है कि बैंकों का ब्याज दर बढ़ने के साथ ही ईएमआई भी बढ़ेगी। हालांकि रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, मॉनिटरी पॉलिसी सहित बिजनेस और बैंकिग क्षेत्र से जुड़े अन्य टर्म की जानकारी आम लोगों को कम ही होती है। इसलिए यहां उदाहरण के साथ सामान्य बोलचाल की भाषा में जानिए रेपो रेट बढ़ाए जाने का आपपर क्या प्रभाव पड़ेगा?

रेपो रेट बढ़ने से हमपर क्या प्रभाव पड़ेगा इसे जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, मॉनिटरी पॉलिसी होता क्या है? तो आईए पहले जानते हैं इन बैकिंग टर्म के बारे में-

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1- रेपो रेट (Repo Rate)
रेपो रेट का मतलब है रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर। मतलब वो ब्याज दर जिसपर रिजर्व बैंक देश के अन्य बैंकों को ब्याज देता है। रेपो रेट कम होने का मतलब है कि बैंक अपने ग्राहकों को कम ब्याज दर पर होम लोन, व्हीकल लोन सहित अन्य लोने देंगे। बीते दिनों रेपो रेप बढ़ाया गया है। इस कारण बैंक भी अपना ब्याज दर बढ़ा रही है।

2- रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
रिवर्स रेपो रेट वो रेट है जिस पर बैंकों को आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी के लिक्विडिटी को नियंत्रित करता है। समय-समय पर उस दौर की व्यवस्था व मांग के अनुसार आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम को उसके पास जमा कराएं।

3- सीआरआर (Cash Reserve Ratio)
भारत की बैंकिंग व्यवस्था के अनुसार देश के सभी बैंकों को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।

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4 – एसएलआर (Statutory Liquidity Ratio)
लिक्विडिटी (Liquidity) या तरलता के जरिए किसी एसेट या संपत्ति को बिना उसके मार्केट प्राइस को प्रभावित किए रेडी कैश में बदला जा सकता है। सबसे ज्यादा लिक्विड एसेट खुद नकदी ही है। लिक्विडिटी के दो मुख्य प्रकारों में मार्केट लिक्विडिटी और अकाउंटिंग लिक्विडिटी शामिल हैं। लिक्विडिटी की माप करने के लिए करेंट, क्विक और कैश रेशियो सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है।

5. मॉनिटरी पॉलिसी (Monetary Policy)
मॉनिटरी पॉलिसी या मौद्रिक नीति वह नीति है जो देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा मनी सप्लाई को नियंत्रित करने और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देती हैं। मॉनिटरी पॉलिसी टूल्स में ओपेन मार्केट परिचालन, बैंकों को प्रत्यक्ष लेंडिग, बैंक रिजर्व आवश्यकता, अपारंपरिक आपात लेंडिंग कार्यक्रम और बाजार अपेक्षाओं को प्रबंधित करना-जो केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता के अधीन है, शामिल है।

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रेपो रेट को बढ़ाए जाने से आपका ईएमआई कितना बढ़ेगा
यदि किसी व्यक्ति ने 30 लाख रुपए का होम लोन 20 साल के लिए 7.5 प्रतिशत ब्‍याज दर पर ले रखा है और इस पर अभी हर महीने 24,168 रुपए की ईएमआई चुकाते हैं, तो अब बढ़े हुए ब्याज दर के तहत हर महीने की किस्‍त बढ़कर 24,907 रुपए हो सकती है। यानी आप हर महीने 739 रुपए ज्‍यादा किस्‍त चुकाएंगे। क्योंकि रेपो रेट बढ़ने के बाद आपके कर्ज की ब्‍याज दर भी बढ़कर 7.9 फीसदी हो जाएगी।

पूरी लोनअवधि में 1.77 लाख रुपए का बोझ बढ़ जाएगा
यदि 20 साल के पूरे लोन अवधि की बात की जाए तो पहले के ब्‍याज दर के हिसाब से ग्राहक को 20 साल में कुल 28,00,271 रुपए ब्‍याज के रूप में अदा करना पड़ता। लेकिन अब रेपो रेट बढ़ाए जाने के बाद ब्याज दर बढ़ाए जाने से कुल ब्‍याज देनदारी 29,77,636 रुपये हो जाएगी। इस तरह नई ब्‍याज दर के आधार पर पर कुल 1,77,365 रुपये का बोझ बढ़ जाएगा।

महंगाई को बताया गया रेपो रेट बढ़ाए जाने का कारण
बीते बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी करते हुए इसे 4.40 प्रतिशत कर दिया। इस बढ़ोतरी के पीछे महंगाई को नियंत्रित करने को वजह बताया गया है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इन्फ्लेशन, जियो पॉलिटिकल टेंशन, कच्चे तेल की कीमत और अन्य सामाग्रियों के बढ़ते दामों ने भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर किया है। इसको नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट को बढ़ाया जाना जरूरी हो गया था।

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