खुदाई में सामने आई हजारों साल पुरानी ये चीजें
छेत्रीय लोगों का मानना है कि, इस किले के रहस्य कभी खत्म ही नहीं होते यहां आए दिन लोगों को इस किले से जुड़ी नई नई चीजों के बारे में पता चलता है। इसी के चलते पुरातत्व विभाग की टीम इस किले का समय समय पर निरिक्षण करती रहती हैं। इसी को लेकर हाल ही में किले की पश्चिमी दिशा में खुदाई की गई थी, खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग की टीम को कई खास चीजें मिलीं। खुदाई किये गए स्थान से जमीन के अंदर एक खूबसूरत महल मिला, जांच में सामने आया कि, ये महल रानी के लिए बनवाया गया होगा। रानी महल में गुप्त 20 कमरों का पता चला है। पुरातत्व विभाग की मानें तो यह महल 100 बाय 100 की जगह में बना है। इस महल में एक स्नान कुंड भी है। साथ ही, खुदाई में एक जेल का भी पता चला है। जेल में लोहे की खिड़कियां लगी हुई हैं। साथ ही, दरवाजे भी मिले हैं। जेल में लगभग चार बैरकें हैं।
किले से जुड़ा रहस्यमयी तथ्य
असीरगढ़ किला भारत खास संरचनाओं में से एक है, जो सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित है। समुद्र तल से लगभग 250 फुट की ऊंचाई पर स्थित ये किला आज भी अपने वैभवशाली अतीत को बयान करता है। ऐसा कहा जाता है कि, ऊंचे पहाड़ पर स्थित इस किले में एक जलाशय है, जो कितनी ही भीषण गर्मी हो कभी सूखा नहीं है। यहां के लोग ये मानते हैं कि, भगवान कृष्ण के श्राप का शिकार अश्वत्थामा यहां स्नान करने के बाद पास में स्थित शिव मंदिर में पूजा करने जाते हैं। भगवान शिव का मंदिर तालाब से थोड़ी दूर गुप्तेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के चारों ओर गहरी खाईंयां हैं। माना जाता है कि इन खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता है, जो मंदिर से जुड़ा है।
महाभारतकाल से जुड़ी हैं यहां की मान्यताएं
कहा जाता है कि इस किले में महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक अश्वत्थामा आज भी वहां वजूद है। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वत्थामा को उनकी एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया। लोगो का मानना है कि अश्वत्थामा लगभग पिछले पांच हजार से यहीं भटक रहे हैं। किले के संदर्भ में लोगों का मानना है कि, किले के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में अश्वत्थामा अमावस्या व पूर्णिमा तिथियों पर शिव की उपासना और पूजा करते हैं। यह सिलसिला पांच हजार सालों से जारी है। हालांकि, इस दावे की पुष्टि तो नहीं हुर्इ, लेकिन कुछ बातों और घटनाओं के आधार पर ये मान्यता है कि, ऐसा अश्वत्थामा ही कर सकते हैं।
कौन हैं अश्वत्थामा?
अश्वत्थामा महाभारतकाल यानी द्वापर युग में जन्मे थे। उन्हें उस युग का श्रेष्ठ योद्धा माना जाता था। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भानजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या सिखाई थी। महाभारत के युद्ध के समय गुरु द्रोण ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। अश्वत्थामा भी अपने पिता की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था।
असीरगढ़ का नामकरण ?
किले को लेकर देश-प्रदेश के विद्वानों का मानना है कि, इसका निर्माण रामायण काल में हुआ है। असीरगढ़ के नामकरण के पीछे एक इतिहास से संबंधित एक कथा जुड़ी है। कथा के अनुसार यहां कभी कोई आशा अहीर नाम का इंसान रहने आया था, जिसके पास हजारों पशु थे। कहा जाता है कि उन पशुओं की सुरक्षा के लिए आशा अहीर ने ईंट गारा – मिट्टी व चूना-पत्थरों का इस्तेमाल कर दीवारें बनाई थी। इसी वजह से कथा को महत्व देते हुए अहीर के नाम पर इस किले को असीरगढ़ नाम दिया गया। इस किले पर कई सम्राटों का शासन रहा है। यहां कई समय तक चौहान वंश के राजाओं ने भी राज किया है।
कैसे पहुंचे यहां
असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है। 20 किमी का यह छोटा सफर आप स्थानीय परिवहन साधनों की मदद से पूरा कर सकते हैं। बुरहानपुर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप बुरहानपुर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।