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राजहंसों के साथ विदेशी कुरजां को रास आ रही हाड़ोती की आबोहवा

जिले की सदाबहार आबोहवा व यहां का नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य देशी-विदेशी सैलानियों के साथ-साथ दुनियाभर के परिंदों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

बूंदीDec 14, 2021 / 04:51 pm

Narendra Agarwal

राजहंसों के साथ विदेशी कुरजां को रास आ रही हाड़ोती की आबोहवा

राजहंसों के साथ विदेशी कुरजां को रास आ रही हाड़ोती की आबोहवा

बूंदी. जिले की सदाबहार आबोहवा व यहां का नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य देशी-विदेशी सैलानियों के साथ-साथ दुनियाभर के परिंदों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। जिले के जलस्रोत साल भर रंग-बिरंगे पक्षियों के कलरव से सैलानियों को आकर्षित करते हैं।
हिमालय पार के सुदूर ठण्डे प्रदेशों में बर्फबारी शुरू होने के साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी गुजरात व पश्चिमी राजस्थान मेें शीतकालीन प्रवास पर आने वाले कुरजां पक्षियों को अब चम्बल की प्राकृतिक वादियां व जैव विविधता से भरपूर हाड़ौती की आबोहवा भी रास आने आने लगी है। एक दशक से कुरजां दल बूंदी जिले के रियासतकालीन रामनगर तालाबों पर शीतकाल में नियमित रूप से अपना आशियाना बनाने लगे हैं। इस साल भी करीब 110 कुरजां पक्षियों के दल ने दो महिने से रामनगर के तालाबों व आसपास के खेतों में अपना आशियाना बना रखा है। जिले में अन्य प्रवासी या स्थानीय पक्षियों की भी सभी जलस्रोतों पर अच्छी तादात में उपस्थिति बनी हुई है।
एक दशक से हाड़ौती बना कुरजां का नया घर
बूंदी सहित हाड़ौती अंचल में विगत डेढ़ दशक से प्रवासी व स्थानीय पक्षियों का अध्ययन कर रहे पक्षी प्रेमी पृथ्वी सिंह राजावत ने बताया कि सबसे पहले अक्टूबर 2010 में करीब 300 कुरजां पक्षियों का दल बूंदी आया था, जो तीन माह तक रामनगर के तालाबों पर रुका था। उसके बाद हर साल यहां कुरजां पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया जो लगातार जारी है। बीच में एक-दो बार कमजोर मानसून के कारण तालाब सूखे रहने के दौरान भी कुरजां पक्षी बूंदी में आते रहे हैं, लेकिन इस दौरान उनका प्रवास कुछ दिनों तक ही रहा। उन्होंने बताया कि अब कोटा जिले के आलनिया, बारां के सोरसन, बूंदी के बरधा वेट लेंड व भीमलत-अभयपुरा बांधों पर भी अब कुरजां पक्षी दिखाई देने लगे हंै जो अच्छा संकेत है। यदि हाड़ौती में भी कुरजां संरक्षण पर योजना बनाकर काम किया जाए तो इसके बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। गौरतलब है कि कुरजां पक्षी मध्य एशिया के साइबेरिया, मंगोलिया, चीन अदि देशों से हजारों किलोमीटर का लंबा सफर तय कर शीतकालीन प्रवास पर राजस्थान व गुजरात आते हैं। जोधपुर जिले के खींचन कस्बे में इनके लिए चुग्गाघर व संरक्षण के विशेष इंतजाम किए जाते हैं जहां हजारों की तादात में हर साल कुरजां पक्षी पहुंचते हैं।

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