शिकारपुर क्षेत्र के खंडवाया में चल रहा है निर्माण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS ) बुलंदशहर के शिकारपुर क्षेत्र के खंडवाया में आर्मी स्कूल खोल रहा है। इसक भूमि पूजन भी हो चुका है। स्कूल का निर्माण कार्य चल रहा है। यह आर्मी स्कूल 16 बीघे जमीन पर बन रहा है। इसे आरएसएस ( RSS ) के पूर्व संघ संचालक राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया के नाम पर खोला जाएगा। इसका नाम ‘ रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर’ रखा गया है। संघ शिक्षा शाखा विद्या भारती इस स्कूल का संचालन करेगी।
CBSE माध्यम से होगी पढ़ाई यहां पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ( CBSE ) माध्यम से पढ़ाई कराई जाएगी। इस स्कूल में कक्षा 6 से 12वीं तक के बच्चे प्रवेश ले सकेंगे। माना जा रहा है कि अगर आर्मी स्कूल की यह योजना सफल होती है तो देश भर में और इस तरह के औरभी स्कूल खोले जाएंगे। स्कूल का प्रॉस्पेक्टस तैयार हो चुका है। अगले माह अगस्त या सितंबर से स्कूल में रजिस्ट्रेशन के इच्छुक बच्चों से आवेदन मांगे जाने लगेंगे। इसके बाद अगले साल अप्रैल 2020 से यहां बच्चों की क्लासेज शुरू हो जाएंगी।
यह दावा किया था पिछले साल पिछले साल अगस्त में इस स्कूल का शिलान्यास और भूमि पूजन किया गया था। उस दौरान आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद महाराज बतौर मुख्य अतिथि यहां आए थे। उस समय दावा किया गया था कि रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर देश में पहला ऐसा विद्यालय होगा, जिसमें शिक्षा के साथ ही सेना में भर्ती की तैयारी भी कराई जाएगी। प्रांत प्रचार प्रमुख अजय मित्तल ने बताया कि बुलंदशहर के शिकारपुर में आर्मी स्कूल खुल रहा है। यह सत्र 2020 से स्टार्ट होगा। यह 40 करोड़ का प्रोजेक्ट है।
यह है वजह इस स्कूल का नाम आरएसएस के पूर्व संघ संचालक राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया के नाम पर रखा गया है। इसकी वजह यह है कि शिकारपुर तहसील का बनैल गांव पूर्व संघ संचालक रज्जू भैया का पैतृक गांव है। वर्ष 1922 में आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक रज्जू भैया का यहां पर जन्म हुआ था। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के लेक्चरर रहे थे। 1960 के दशक में उन्हें संघ का प्रचारक बनाया गया था। उत्तर प्रदेश का प्रांत प्रचारक बनने के बाद उन्हें 1980 में संघ का सरकार्यवाह बनाया गया। संघ के पूर्व सरसंघ चालक बाला साहेब देवरस ने 1994 में उनको को उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद वर्ष 2000 में खराब स्वास्थ्य के कारण रज्जू भैया ने यह जिम्मेदारी श्री सुदर्शन को सौंप दी थी। जुलाई 2003 में उनका लंबर बीमारी के बाद निधन हो गया था।
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