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तबलीगी जमाअत विश्विक सतह पर सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार आंदोलन है। इसकी शुरुआत आजादी से पहले 1927 में हुई थी। यह वह दौर था जह देश में आर्य समाज की ओर से घर वापसी अभियान चलाया जा रहा था। दूरदराज के गांव और देहात में रहने वाले कम शिक्षित मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखने के लिए उन्हें धार्मिक तौर पर शिक्षित करने के लिए इस आन्दोलन की शुरुआत की गई, जो अब दुनियाभर के 213 देशों तक फैल चुका है। आंदोलन 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में शुरू किया था।
तबलीगी जमात में लोग अपने खर्च पर तीन दिन से लेकर चार महीने तक अलग-अलग गावों, कस्बों और शहरों में लोगों के घर-घर जाकर उन्हें मस्जिदों में नमाज के लिए दावात देते हैं। इसके बाद मस्जिद में जमा लोगों को इस्लाम धर्म की बुनियादी शिक्षा दी जाती है। इसके इलावा बड़े पैमाने पर इस संगठन का समागम (इज्तिमा) भी होता है। यह इज्तिमा राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर और अंतरराष्ट्रीय स्तर के होते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर के इज्तिमा को आलमी इज्तिमा कहते हैं। 1, 2 और 3 दिसंबर को ऐसा ही एक आलमी इज्तिमा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में होने जा रहा है। इसमें दुनियाभर के 10 लाख लोगों के पहुंचने की संभावना है।
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तबलीगी जमाअत मुसलमानों को मूल इस्लामी पद्दतियों की तरफ़ बुलाता है। खास तौर पर धार्मिक तरीके, वेशाभूशा, वैयक्तिक गतिविधियां माना जाता है। इस चिन्तन वाले लोगों की संख्या दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है। यह संगठन 150 से 213 देशों में फैल चुका है। इस का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक इस्लाम को मुसलमानों तक पहुंचाना और फैलाना है। इस जमाअत में खास तौर उद्देश्य “छ: उसूलों कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग को मुसलमानों में आम करना है। यह एक धर्म प्रचार आंदोलन माना गया।