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बाड़मेर

सरकार मरम्मत करवा कपूरड़ी के कोयले से चला सकती थी प्लांट

गिरल पावर प्लांट : केबिनेट में गिरल की दोनों इकाइयों का शत प्रतिशत विनिवेश का फैसला

बाड़मेरSep 15, 2016 / 11:55 am

moolaram barme

coal plants Kpurdi

coal plants Kpurdi

1923 करोड़ की लागत का है पावर प्लांट

786.71 करोड़ का कुल घाटा था 2014-15 में

958.91 करोड़ का घाटा हो गया 2015-16 में

100 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाना पड़ रहा था हर साल
250 मेगावाट क्षमता की हैं दोनों इकाइयां

29 प्रतिशत बिजली का ही उत्पादन हुआ पिछले साल

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के विभिन्न उपक्रमों के लगातार घाटे में रहने के कारण गिरल लिग्नाइट पावर लिमिटेड की बाड़मेर स्थित 125 मेगावाट की दोनों इकाइयों के संबंध में आर.बी. शाह टास्क फोर्स की ओर से दिए गए तीन सुझावों में से सरकार ने इसे बेचने की अभिशंसा मान ली। 
जबकि जानकारों के मुताबिक इन इकाइयों पर सरकार सौ करोड़ रुपए मरम्मत पर खर्च कर यदि कपूरड़ी और सोनड़ी का एक फीसदी सल्फर वाला लिग्नाइट उपलब्ध करवाती तो इसे चलाया जा सकता था। गिरल में बिजली की लागत 2.5 रुपए प्रति यूनिट है इसमें 1 रुपए प्रति यूनिट का अन्य खर्च होने से यहां पर 3.5 रुपए प्रति यूनिट की दर से उत्पादन संभव था।
 गौरतलब है कि टास्क फोर्स ने इसके निजीकरण, संचालन व रखरखाव निजी कम्पनी को देने या इस पर सौ करोड़ का खर्च कर सरकार के स्वयं संचालित करने के तीन सुझाव दिए थे। यह प्रदेश का पहला लिग्नाइट आधारित पावर प्लांट था।
आरोप : उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाना चाहती है सरकार

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव हरीश चौधरी ने गत शनिवार को यहां पत्रकार वार्ता में आरोप लगाया था कि सरकार गिरल पावर प्लांट को घाटे में बताकर इसका निजीकरण करना चाहती है। यह बहुत बड़ा घोटाला है। इसमें उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी उपक्रम को बंद किया जा रहा है।
बड़ा सवाल : अपने प्लांट को कपूरड़ी का कोयला क्यों नहीं दिया

गिरल को वर्तमान में उपलब्ध कोयले में 6 फीसदी सल्फर होने से चोकिंग की समस्या थी पर यहां से कुछ ही दूरी पर कपूरड़ी व सोनड़ी में आरएसएमएम के पास दो खानें हैं, वहां के लिग्राइट में महज एक फीसदी सल्फर है। यह कोयला गिरल को क्यों नहीं दिया गया?
लापरवाही : दोनों इकाइयां बंद थी, ब्याज चुकाना भारी

लिग्नाइट आधारित गिरल पावर प्लांट की दोनों इकाइयां महीनों से बंद पड़ी थी। एक इकाई तो डेढ़ साल से ठप थी। दोनों इकाइयों के बार-बार बंद होने का परिणाम रहा कि पिछले वर्ष 29.22 प्रतिशत बिजली का ही उत्पादन हुआ, जबकि दोनों इकाइयों की क्षमता 250 मेगावाट है। 
गिरल ने करीब 1600 करोड़ का ऋण इन दोनों इकाइयों के लिए लिया था। इसका सालाना ब्याज 100 करोड़ रुपए है। जानकारों के अनुसार उत्पादित हो रही बिजली से मुश्किल से 8-9 करोड़ रुपए मासिक आ रहे थे, जो प्लांट के खर्चे पर ही पूरे हो जाते। एेसे में ब्याज ज्यों का त्यों था।

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