दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा
जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।
उदासियों ने मिरी आत्मा को घेरा है
रूपहली चाँदनी है और घुप अंधेरा है
कहीं कहीं कोई तारा कहीं कहीं जुगनू
जो मेरी रात थी वो आप का सवेरा है
उफ़ुक़ के पार जो देखी है रौशनी तुम ने
वो रौशनी है ख़ुदा जाने या अंधेरा है
इसे तो रहने दो मेरा यही तो मेरा है।
…
जब चाहा इकरार किया, जब चाहा इंकार किया
देखो हमने खुद ही से कैसा अनोखा प्यार किया
जैसे तेज छुरी को हमने रह-रहकर फिर धार किया
रोते दिल हँसते चेहरों को कोई भी न देख सका
आंसू पी लेने का वादा, हां सबने हर बार किया
जो कोई भी कर न सका वह हमने आख़िरकार किया
“नाज़” तेरे जख्मी हाथो ने जो भी किया अच्छा ही किया
तुने सब की मांग सजी, हर इक का सिंगार किया।
अयादत होती जाती है,इबादत होती जाती है
मेरे मरने की देखो सबको आदत होती जाती है
तेरे क़दमों की आहट को है दिल यह ढूंढ़ता हरदम
हर इक आवाज़ पे इक थरथराहट होती जाती है।
मीना कुमारी के कुछ शेर-
रात खैरात की सदके की सहर होती है।
आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह।
बैठे रहे हैं रास्ता में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे