मधुर भंडारकर ने कहा कि, ‘सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि फिल्म इंडस्ट्री के लोग एक-दूसरे के समर्थन में खड़े होने से बचते हैं। हर कोई अपने स्वार्थ तक सीमित रहना चाहता है। मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं, जो हर एक अच्छी फिल्म के समर्थन में खड़ा रहता है। यह सोच दूसरों में भी होनी चाहिए।’ उन्होंने आगे बताया, ‘कि फिल्म को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में देखा जाता है। लेकिन, निर्माता को यह याद रखना होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से किसी धर्म, जाति या समुदाय विशेष की भावना को ठेस न पहुंचे। आज समाज पर आधारित फिल्मों के विरोध का ट्रेंड बन रहा है। यह अच्छा नहीं है।’
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‘मैंने सोचा था कि देश की ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाएं युवाओं के सामने फिल्म के जरिये रखी जानी चाहिए। लेकिन, दुख की बात रही कि लोग मुझे राजनीतिक चश्मे से देखने लगे। मेरा राजनीतिक विरोध किया गया। लेकिन, मैं अपने निर्णय पर अटल रहा।’ भंडारकर ने कहा कि ‘बात ‘पद्मावत’ की हो या ‘उड़ता पंजाब’ की, इन फिल्मों के विरोध में मैं हमेशा सबसे पहले समर्थन में आया। लेकिन, सभी लोग आगे आएं, यह भी जरूरी है।’
मधुर भंडारकर ने अंत में बताया कि, ‘इंदु सरकार फिल्म बनाना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही थी। फिल्म को लेकर मेरे पुतले फूंके गए, मेरी तस्वीर पर कालिख पोतने की कोशिश की गई। उस समय मेरी 11 वर्षीय बच्ची टीवी में देखकर पूछती थी, पापा, आपके नाम पर लोग मुर्दाबाद क्यों कर रहे हैं। इसका जवाब मेरे पास नहीं था।’
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