इन घटनाओं ने तोड़ दिया था साल 1980 के दौर में विनोद खन्ना अपने स्टारडम से अमिताभ बच्चन को टक्कर दे रहे थे। लेकिन तभी विनोद खन्ना ने हिंदी फिल्म जगत को अलविदा कह दिया। दरअसल इस दौरान 26-27 साल के विनोद खन्ना के परिवार में अचानक कई लोगों की मृत्यु हो गई, जिसमें उनकी मां भी शामिल थीं। अपनों की मौत के दुखद अनुभव ने उन्हें आध्यात्मिकता की और मोड़ दिया और उन्होंने सन्यास ले लिया।
जिंदगी की सच्चाई से सामना एक इंटरव्यू में विनोद खन्ना ने बताया था कि उस दौरान मौत ने जिंदगी की सच्चाई से मेरा सामना करवा दिया था। मेरे परिवार में छह-सात महीने में एक के बाद एक चार लोग मर गए, उनमें से एक मेरी मां और एक मेरी बहुत अजीज बहन थी। उनकी मौत से मेरी जड़ें हिल गई और मैंने सोचा, एक दिन मैं भी मर जाऊंगा। ऐसे में खुद के बारे में जानने के लिए मैं दिसंबर 1975 में ओशो के पास चला गया।
जूठे बर्तन धोने का काम किया ओशो ने मेरे से पूछा, क्या तुम संन्यास के लिए तैयार हो? मैंने कहा, मुझे पता नहीं, लेकिन आपके प्रवचन मुझे बहुत अच्छे लगते है। ओशो ने कहा तुम संन्यास ले लो। तुम तैयार हो। बस, मैंने संन्यास ले लिया। विनोद खन्ना ने बताया था कि मैंने ओशो के राजनीशपुरम में टॉयलेट साफ करने और लोगों के जूठे बर्तन धोने का भी काम किया। उनके (ओशो) कपड़े मुझ पर ट्राई किए जाते थे क्योंकि हम दोनों की कद काठी एक जैसी थी।
अमिताभ के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी होते आपको बता दें कि जब विनोद खन्ना ने सन्यास के कई साल बाद 1987 में फिल्मों से वापसी की तो उन्हें लोगों ने खूब प्यार दिया। उनकी फिल्में इंसाफ़, सत्यमेव जयते सुपरहिट रही थीं। विनोद के वापस आते ही लोग कहने लगे थे, अगर वो बॉलीवुड छोड़कर न जाते तो अमिताभ बच्चन के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी होते।