साल 1957 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘मदर इंडिया’ की लोकप्रियता का असर ही था कि इसे उस साल ऑस्कर अवॉर्ड्स में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए नॉमिनेट किया गया था। तो चलिए आपको बताते हैं इस फिल्म को किस वजह से ऑस्कर अवॉर्ड नहीं मिल सका।
फिल्म ‘मदर इंडिया’ को बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया था, लेकिन केवल एक वोट के कारण ‘नाइट ऑफ कैबिरिया’ से हार गई थी। फिल्मों को रिजेक्ट करने के ऑस्कर जूरी के अपने कारण होते हैं, लेकिन कई बार ऐसे भी तर्क सामने आए जो काफी हास्यास्पद थे।
फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी आने के अगले साल 1957 में एकेडमी अवॉर्ड में अपनी पहली ऑफिशियल एंट्री भेजी थी, जो थी ‘मदर इंडिया’। दरअसल, ऑस्कर के कुछ ज्यूरी मेंबर्स को इस फिल्म में ये बात खटक रही थी कि क्यों राधा की भूमिका निभा रहीं नरगिस ने पति के भाग जाने के बाद उस लाला सुखीलाल का शादी का प्रपोजल ठुकरा दिया, जो उसकी लगातार मदद करना चाहता था। अगर राधा, लाला से शादी कर लेती तो उसके बच्चों को इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता। यहां नायिका ने रूढ़िवादी सोच दिखाई।
दरअसल, चयनकर्ता को यह किसी ने नहीं स्पष्ट किया कि भारतीय नारी अपने सिंदूर के प्रति कितनी अधिक समर्पित होती है। फिल्म भारत के सदियों पुराने आदर्श के प्रति समर्पित थी। ऑस्कर जीतने के लिए फिल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने के लिए वहां एक प्रचार विभाग नियुक्त किया जाना चाहिए था।
फिल्म के अंतिम दृश्य में एक मां अपने सबसे अधिक प्रिय पुत्र को गोली मार देती है क्योंकि वह सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ अपहरण कर रहा था। बताया जाता है कि ‘मदर इंडिया’ नरगिस द्वारा सुझाया गया नाम था। मदर इंडिया तीसरे पोल के बाद महज एक वोट से ऑस्कर अवॉर्ड जीतने से चूक गई थी।