अब फिल्म फेस्टिवल में भी क्वालिटी सिनेमा
अंशुमन ने कहा, ‘अब समय बदल रहा है। आर्ट सिनेमा को भी दर्शक पसंद कर रहे हैं। फिल्म फेस्टिवल में भी क्वालिटी सिनेमा चलता है। फिल्म अगर कंटेंट, साउंड, टेक्निकली सभी मायनों में अच्छी है, तभी उसका सलेक्शन होता है। फिल्म फेस्ट में आने वाली फिल्में अब कर्मशियल सिनेमा में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ इसका अच्छा उदाहरण है। ‘ बता दें अंशुमन की फिल्म ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’ का इंडिया प्रीमियर जयपुर में फिल्म फेस्टिवल के दौरान हुआ। इसमें उनके साथ जरीन खान लीड रोल में हैं।
दर्शकों की सोच और टेस्ट बदला
‘सिनेमा को लेकर दर्शकों की सोच और उनका टेस्ट बदल रहा है। अब उन्हें ऐसी फिल्में अच्छी नहीं लग रहीं, जिनको पैकेज(मसाला फिल्में) के रूप में दिखाया जाता है। अब वे कहानी देखकर मूवी देखने जाते हैं। स्क्रिप्ट अच्छी होनी चाहिए। अब फिल्म के असली हीरो राइटर और डायरेक्टर हैं। जहां तक बात है अभिनेताओं की तो अगर वे अपना काम ईमानदारी और अच्छे से करेंगे तो जरूर चमकेंगे। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि पहली फिल्म दिबाकर बनर्जी (निर्देशक) के साथ मिली।’
एक्टर ने कहा-पिछला दशक (2010—2019) हिंदी सिनेमा का टर्निंग प्वाइंट रहा है। अब बड़े पर्दे पर अच्छी कहानियां आ रही हैं। अब फीयरलैस स्टोरी लिखी जा रही हैं। आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘बाला’ आई थी। अगर ये मूवी 90 के दशक में बनती तो इतनी बड़ी हिट नहीं होती। एक्टिंग स्टाइल भी बदल रहा है। दर्शक वर्ग सोच समझदार फिल्में चुनते हैं देखने के लिए क्योंकि उनके पास विकल्प ज्यादा हैं।
एंटरटेनमेंट अब मोबाइल पर
वेब सीरीज और डिजिटल प्लेफॉर्म के बढ़ते क्रेज के बारे में उन्होंने कहा,’एंटरटेनमेंट अब मोबाइल पर चल रहा है। मैं जब अपनी बिल्डिंग से निकलता हूं तो देखता हूं कि फ्री टाइम में सिक्योरिटी गार्ड मोबाइल पर वेब सीरीज और शो देखता रहता है। डिजिटल प्लेफॉर्म पर नई—नई कहानियां आ रही हैं। अच्छा कंटेंट लोगों को दिखाया जा रहा है। मैं भी एक वेब शो कर रहा हूं, जो इसी वर्ष आएगा और जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी। यह अपने जोनर का अब तक का सबसे बड़ा शो होगा।
सेंसरशिप को लेकर मापदंड सही होने चाहिए
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सेंसरशिप को लेकर के सवाल को लेकर अभिनेता ने कहा—सबसे पहले तो सेंसरशिप को लेकर मापदंड सही होने चाहिए। कई बार देखा जाता है कि एक ही विषय पर बनी फिल्मों के लिए अलग—अलग मापदंड अपनाए जाते हैं। अन्य देशो में सिनेमा आर्ट एंड कल्चर के अंतर्गत आता है जबकि हमारे यहां सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय में। डिजिटल पर भी कंटेंट के आधार पर स्लैब बना देने चाहिए। जो कंटेंट व्यस्कों के लिए है, उसे सिर्फ वे ही देख पाएं। ये इसका एक हल हो सकता है।